हे पिता! तुम एक अनसुनी कहानी हो
   मां की ममता जग जाहिर,पर हे पिता! तुम एक अनसुनी कहानी हो,  ऊपर से लगते बहुत कड़क, पर अंदर से गंगा का निर्मल पानी हो,  हे पिता! तुम एक अनसुनी कहानी हो।  वह आनंद कहाँ किसी झूले में जो बाहों में तुम्हारी पाते थे।  बिटिया मेरी कितनी खुश है, यह सोच झुलाते जाते थे।  नटखट सी बातें सुन करके,कहते बिटिया तूम बड़ी सयानी हो,  तुमसे ही घर की रौनक है, तुम मेरी बिटिया रानी हो।  हे पिता तुम एक अनसुनी कहानी हो।  खुद की कमीज थी फटी हुई,पर मुझे सजाते रहते थे,  खुद का पेट खाली रहता,पर मुझे खिलाते रहते थे।  जिस चीज पर मैंने हाथ रखा, वह झट से मेरी हो जाती थी,  पापा मेरे कितने अच्छे हैं, यह सोच मैं कितना इतराती थी।  छोटी थी मैं, समझ सकी ना, कितनी मुश्किल, परेशानी में हो,  कभी तुमने भी कुछ कहा नही,तुम भी कितने अभिमानी हो,  हे पिता! तुम एक अनसुनी कहानी। जिस आंगन में मैं बड़ी हुई वह स्वर्ग से न्यारा लगता है,  हे पिता!तुम्हारा चेहरा तो मुझे भगवान से प्यारालगता है। तुम हो तो घर में रौनक है, तुम हो तो खुद में हिम्मत है, तुम हो तो दुनियाँ में मेरी ,शायद सबसे अच्छी किस्मत है। तुम हो तो चारो धाम यहीं, तुम हो ...