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Showing posts from February, 2019

कविता-"पुलवामा हमला"(एक शहीद के बेटे की अपनी माँ से मार्मिक विनती)

माँ मुझको बंदूक मंगा दो,मैं भी लड़ने जाऊंगा, बाबा के हत्यारों को चुन-चुन मार गिराऊंगा। छोड़ रहा हूँ छोटा भाई,वह सारे रस्म निभाएगा, कर दिया बलिदान पति को तूने, अब तेरा बेटा कर्ज चुकाएगा। बहुत हो चुके छलनी सीने, अब दुश्मन को धूल चटाएंगे, उसके घर में घुस करके हम,घर में ही कब्र बनाएंगे। माँ मुझको बंदूक दिला दो हम भी लड़ने जाएंगे। करबद्ध निवेदन करता हूँ मैं, राजनीति के कर्णधारो से, दे दो हमको खुली छूट, लड़ने को इन गद्दारो से। खा रहा कसम हूँ मातृभूमि की,रण में ना पीठ दिखाउंगा, लहराएगा तीरंगा दुश्मन की धरती पर, या खुद तिरंगें में लिपट के आउंगा। माँ मुझको बंदूक दिला दो, मैं भी लड़ने जाउंगा। बहुत चल चुका गांधी के पथ पर,अब नेताजी के पथ पर चलने दो, दुश्मन की छाती पर चढ़कर,सीने में गोली भरने दो। एहसास करा दो दुश्मन को तिल भर भी नहीं सह सकते हैं, औकात पे अपनी आ जाये तो तुमको, नक़्शे से गायब कर सकते हैं। हम बंशज राणा, वीर शिवा के,दुश्मन से खौफ ना खायेंगे माँ मुझको बन्दूक दिल दो,हम भी लड़ने जाएंगे। मत शील करो,संकोच करो,अपनो का कुछ तो होश करो, खो चुकी मनोबल जनता के सीने में अब तो जोश भरो।

कविता: तुम कहाँ और मैं कहाँ

तुम धन्ना सेठ की बेटी हो,                             मैं गँवरू गंवार का बेटा हूँ तुम नरम बिस्तरों पर सोती,                             मैं सुखी जमीन पर लेटा हूँ। तेरे घर मे छप्पन भोग पके ,                              मेरे घर में सूखी रोटी है सूरज सा चमके भाग्य तेरा,                              पर मेरी किस्मत खोटी है। चाँद समान मुख मण्डल तेरा,                              आँखे भी सितारों जैसी है। तू  चले चाल हिरणी की तरह,                             और वाणी भी कोयल जैसी है। पर मैं तो काला कौआ हूं,                              ना रंग सही न रूप सही फिरता हूँ मारा मारा,                             ना आसरा कहीं ना ठौर कहीँ। तूम कल-कल बहती एक नदिया,                             मैं ठहरा तालाब का पानी हूँ तुम झिल-मिल करती रात चांदनी ,                              मैं काली रात अँधियारी हूँ। (Haravendra Pratap Singh,assistant teacher-DCV inter college Saranath,Varanasi)

न्याय और धर्म :व्यक्ति के सर्वोत्तम हथियार

भगवान ने मनुष्य को मस्तिष्क की शक्ति देकर उसे सृस्टि का सर्वश्रेष्ठ जीव का दर्जा प्रदान किया।वह अपने मस्तिष्क का प्रयोग अपने हित लाभ के लिए करने लगा।हित लाभ प्रत्येक प्राणी का अधिकार है लेकिन अधर्म और अन्याय का सहारा लेकर हित लाभ करना अनुचित है।मनुष्य ये भूल जाता है कि सृष्टि को चलाने के लिए ईश्वर ने अपनी एक उत्कृष्ट प्रणाली बनाई है ठीक वैसे ही जैसे कंप्यूटर की प्रोग्रामिंग होती है।व्यक्ति का सबसे बड़ा रक्षक धर्म और न्याय होता है।यदि व्यक्ति अधर्मी है तो उसका विनाश होने से कोई बचा नही सकता।                 महाभारत की कहानी मे जब एकबार यक्ष के द्वारा युधिष्टिर के अलावा सभी भाईयो को मृत कर दिया गया क्योंकी उन्होंने ने यक्ष के प्रश्नो का उत्तर दिये बिना तालाब के जल को पीने का प्रयास किया था।युद्धिष्ठिर के वहा पहुँचने पर यक्ष के द्वारा उनसे भी प्रश्न पूछा गया और उन्होंने सभी प्रश्नों का उत्तर दे दिया जिससे यक्ष पूरी तरह संतुष्ट हो गए।युधिष्ठिर से फिर यक्ष से प्रश्न पूछा,"मैं तुम्हारे किसी एक भाई को जिंदा कर सकता हूँ,तुम किसका जीवन चाहते हो ?"युधिष्ठिर ने कहा,"मैं चाहता हूं

कहानी (पागल अब ठीक हो गया)

एक बार एक साधु एक गाँव से गुजर रहा था।अचानक उसे प्यास लगी और उसने एक कुँए के पास जाकर वहां पानी भर रहे लोगों से पीने के लिये पानी मांगा लेकिन गांव वालों ने पानी देने से मना कर दिया।साधू लोगों को यह श्राप देकर चला गया है कि यदि कल से कोई भी व्यक्ति इस कुएं का पानी पियेगा तो वह पागल हो जायेगा।लोगों ने साधू कि बात पर विश्वास नही किया,लेकिन एक व्यक्ति कुछ पानी घड़े में चुराकर पहाडी पर रख दिया और वही पानी पीने लगा।सुबह होने पर सभी गांव वालों ने साधु की बात पर ध्यान न देकर पानी पी लिया और पागल हो गए।केवल एक व्यक्ति ही गांव में सही सलामत था जिसने पानी नही पिया था।लेकिन गांव के सारे पागल मिलकर उस व्यक्ति को पागल कहने लगे जो सच मे सही था।कुछ दिन बाद उस व्यक्ति का पानी भी समाप्त हो गया और वह भी कुएं का पानी पीने के लिए बाध्य हो गया और वह भी पागल हो गया।उस व्यक्ति के भी पागल हो जाने पर गांव वाले बड़े खुश हुए और कहा कि हाँ,अब यह बिल्कुल ठीक हो गया और इसका पागलपन भी दूर हो गया।

हिंदी कविता--माँ

                                        ईश्वर की बनाई सृस्टि में तू सबसे सुंदर चीज है माँ मन पवित्र गंगा जल सा, गंगा जल शीतल नीर हो माँ। तुम छाँव हो जेठ दुपहरी की,जाड़े में धूप समान हो माँ। तुम मधुर समीर बसंत का हो,धरती पर सुधा समान हो माँ। कुछ और न मागु मैं रब से,आँचल जो  तेरा मेरे सर पर रहे, हर वक्त सदा तुम साथ रहो,जब तक नदिया जल धार बहे। तुम चीज हो क्या उनसे पूछो, माँ जिनके है पास नही, सब कुछ देने को तत्पर है, मिल जाये अगर वो जग में कही। आज भी हर नारी में माँ कौसल्या बसती है, पर क्या किसी पुत्र में भी छबि राम प्रभु सी दिखती है। दुनिया मे कोई चीज नही जो दूध का तेरे मोल करे,वह पूत कपूत कब न रहे,जो खुद पे तुझको बोझ कहे। असहनीय शीत में भी सीने से लगा बदन की गर्मी दी, चिलचिलाती धूप में भी, आँचल की हवा ठंडी दी। तेरा आँचल जो सलामत है तो जन्नत क्या है,  तेरी ममता से बड़ी दुनिया में दौलत क्या है। तुम आदरणीय,तुम परमपूज्य, इश्वर समान महान हो माँ मन पवित्र गंगा जल सा,गंगा जल शीतल नीर हो माँ मन पवित्र गंगा जल सा ,गंगा जल शीतल नीर हो माँ

The Poem"The Dream Of A New World"

                         "Dream Of A New World" The dream of a new world               In which people  may have lovely word They don't quarrel to each other           and think only about for further. We make the atmosphere of honesty,           Which they keep like of his property Man takes birth, man dies,            but a gentle thought never dies: There should be only one religion of humanity, No Hindu,no Muslim,no Sikkh all may live in prosperity: Now we do not want any division in our country There should be peace in the heart of all and sundry: If we mix up all the good substances of every religion, Then we will be great without any question: In such a situation of the country we can live without any gun or sword, Oh!Realy it would be true"The dream of a new world" (Haravendra Pratap Singh)