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How can we measure MRT on PPF -Micro Economics

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        PPF and MRT We can measure MRT on the PPF. For example, MRT between the possibilities D and E is equal to DH/HE and between E and F, it is equal to EI/IF and so on.We know, PPF is concave shaped curve. The slope of PPF is a measure of the MRT. Since the slope of a concave curve increases as we move downwards along the curve, the MRT also rises as we move downwards along the curve. हम PPF पर MRT माप सकते हैं। उदाहरण के लिए, संभावनाओं D और E के बीच MRT DH/HE के बराबर है और E और Fके बीच, यह EI/EF के बराबर है और इसी तरह।हम जानते हैं, PPFअवतल आकार का वक्र है। PPFका ढलान MRT का माप है। चूँकि जैसे-जैसे हम वक्र के साथ नीचे की ओर बढ़ते हैं, अवतल वक्र की ढलान बढ़ती जाती है, जैसे-जैसे हम वक्र के साथ नीचे की ओर बढ़ते हैं, MRT भी बढ़ती जाती है।                   You tube Video  

Whether Economy will always operate on PPF-Micro Economics

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 Whether Economy will always operate on PPF * The exact point of operation depends on how well the resources of economy are used. 1. Economy will operate on PPF only when resources are fully and efficiently utilised. 2. Economy will operate at any point inside PPF if resources are not fully and efficiently utilised. 3. Economy cannot operate at any point outside PPF as it is unattainable with the available productive capacity. It means: Economy can either operate on PPF or inside PPF, known as 'Attainable Combinations'. • But, economy cannot operate outside PPF, known as 'Unattainable Combinations'. Attainable Combinations:  It refers to those combinations at which economy can operate. There can be two attainable options: 1. Optimum utilisation of resources: If the resources are used in the best possible manner, then economy will operate at any point (like, A, B, C or D) on PPF. Why MRT is increases It is assumed that no resourse is equally efficient in production of ...

उत्पादन लागत

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 उत्पादन लागत के अन्तर्गत वे सभी व्यय सम्मिलित किए जाते हैं  जो किसी उत्पादक या फर्म द्वारा वस्तु के उत्पादन व्यय के रूप में उठाए जाते हैं ।                                     अथवा  "उत्पादन लागत में वे सभी भुगतान सम्मिलित हैं जो कि दूसरे को उनकी वस्तुओं एवं सेवाओं के  उपयोग के बदले में दिए जाते हैं । इसमें मूल्य ह्रास तथा अप्रचलन जैसी मदें भी सम्मिलित रहती हैं ।  इसके अतिरिक्त , इसमें उत्पादक द्वारा प्रदान की गई सेवाओं के लिए अनुमानित मजदूरी तथा  उसके द्वारा प्रदान की गई भूमि और पूँजी का पुरस्कार भी सम्मिलित है। उत्पादन लागत = भूमि का लगान + कच्चे माल की कीमत +    मजदूरों की मजदूरी + पूंजी का ब्याज + संगठनों का वेतन +  उद्यमी का सामान्य लाभ           - 1. मौद्रिक लागत ( Money Cost ) – सामान्यतः मौद्रिक लागतों के अन्तर्गत वे लागतें आती हैं , जिन्हें कोई उत्पादक उत्पत्ति के साधनों के प्रयोग के लिए मुद्रा के रूप में व्य...

Father to Son (Solution with questions & answers))

    Stanza wise Meaning with Hindi Translation and Comprehension Questions              Stanza ( 1 )  I do not understand this child  Though we have lived together now  In the same house for years . I know  Nothing of him , so try to build  Up a relationship from how  He was when small .  Meanings : Child ( here , son ) : पुत्र ; Build up ( make or strengthen ) : बचना या मजबूत करना ; Small ( here , very young age ) : बहुत छोटा अर्थात् बच्चा ।                       हिन्दी अनुवाद –  मैं अपने बच्चे ( पुत्र ) को मनोस्थिति समझ नहीं पा रहा हूँ हालांकि हम दोनों वर्षों से इसी मकान में साथ - साथ रह रहे है मैं उसके बारे में कुछ भी नहीं जानता । इसलिये मैं उस पुराने संबंध को फिर से बनाना चाहती हूँ । जब वह बच्चा था ।  Questions : 1 . Write the name of the poem from which the above stanza has been taken .  जिस कविता से उपरोक्त पद्यांश लिया...

प्रतिस्थापन प्रभाव ( SUBSTITUTION EFFECT )

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                प्रतिस्थापन प्रभाव                 ( SUBSTITUTION EFFECT )  जब उपभोक्ता की आय में कोई परिवर्तन न हो तथा दो वस्तुओं के सापेक्ष कीमतों में परिवर्तन हो जाए तो इसके फलस्वरूप किसी वस्तु की मांग में जो परिवर्तन होता है उसे प्रतिस्थापन प्रभाव कहा जाता   है । प्रतिस्थापन प्रभाव उस समय कार्यशील होता है , जबकि उपभोक्ता की आय में परिवर्तन न होते हुए दोनों ही वस्तुओं की सापेक्ष कीमतों में इस प्रकार परिवर्तन होते हैं कि उपभोक्ता पहले की अपेक्षा न अच्छी स्थिति में होता है न खराब स्थिति में अर्थात् उसकी सन्तुष्टि का स्तर पूर्ववत बना रहता है । उपभोक्ता को बदलती हुई कीमतों पर अपनी खरीद को इस प्रकार व्यवस्थित करना पड़ता है कि अपेक्षाकृत महंगी वस्तु कम खरीदी जाती है तथा अपेक्षाकृत सस्ती वस्तु अधिक मात्रा में क्रय की जाती है । कुल मिलाकर उपभोक्ता को न तो हानि होती है और न ही लाभ होता है , बल्कि सन्तुष्टि का स्तर यथावत बना रहता है । इस तरह जब उपभोक्ता एक ही तटस्थता वक्र पर एक सन्तुलन बिन...

एंजिल वक्र ( ENGEL'S CURVE )

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                                         एंजिल वक्र                      ( ENGEL'S CURVE )  एंजिल वक्र किसी वस्तु विशेष की मांगी गई मात्रा तथा उपभोक्ता की आय के बीच सम्बन्ध प्रदर्शित करता है । उन्नीसवीं शताब्दी में जर्मनी के अर्नेस्ट एंजिल ( 1821-1896 ) ने उपभोग व्यय की संरचना अर्थात आय के विभिन्न स्तरों पर परिवारों द्वारा विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं पर व्यय पद्धति जानने हेतु पारिवारिक बजटों का अनुभवगम्य अध्ययन किया । इस अध्ययन में उन्होंने पाया कि दी गई आदत एवं वरीयता दशाओं के अन्तर्गत खाधान्न पर व्यय की जाने वाली आय का अनुपात आय के बढ़ने के साथ - साथ घटता है । आय के विभिन्न स्तरों तथा वस्तु विशेष की खरीदी गई मात्राओं के बीच सम्बन्ध प्रदर्शित करने वाले वक्र का नाम एंजिल वक्र।            ( Engel's Curve ) रखा गया ।  (A)आवश्यक वस्तुओं के लिए एंजिल वक्र---          ...

आय प्रभाव (Income Effect)

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  उपभोक्ता सन्तुलन के परिवर्तनकारी तत्व  तटस्थता वक्र विश्लेषण के अन्तर्गत अभी तक हमने  जिस सन्तुलन का अध्ययन किया उसमें दो आधारभूत मान्यताओं को स्वीकार किया गया है—  ( 1 ) उपभोक्ता की आय में किसी तरह का परिवर्तन नहीं होता तथा  ( 2 ) वस्तुओं की कीमतें स्थिर हैं ।  यदि हम इन मान्यताओं को हटा दें तो तीन प्रकार के परिवर्तन सम्भव हो सकते हैं—  ( i ) जब उपभोक्ता की आय में परिवर्तन हो जाए , परन्तु कीमतें स्थिर रहें ।  ( ii ) उपभोक्ता की मौद्रिक आय में परिवर्तन न हो , जबकि कीमतों में परिवर्तन हो जाए , तथा  ( iii ) जब उपभोक्ता की आय तथा कीमत दोनों में परिवर्तन हो जाए ।                                                                उपर्युक्त परिवर्तनों का अध्ययन क्रमशः निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जाता है----  ( 1 ) आय प्रभाव ( 2 ) प्रतिस्थापन प्रभाव ( 3 ) कीमत प्रभाव आय प्रभाव...

तटस्थता वक्र विश्लेषण द्वारा उपभोक्ता का सन्तुलन ( INDIFFERENCE CURVE ANALYSIS OF CONSUMER'S EQUILIBRIUM )

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  तटस्थता वक्र विश्लेषण द्वारा उपभोक्ता का सन्तुलन                                            ( INDIFFERENCE CURVE ANALYSIS OF CONSUMER'S EQUILIBRIUM )  प्रत्येक उपभोक्ता चाहता है कि उसे सीमित साधनों से अधिक उपयोगिता मिले , परन्तु आय की सीमितता के कारण वह अपने सन्तोष को उस बिन्दु तक नहीं ले जा सकता जहां वह ले जाना चाहता है । अतः उपभोक्ता अपनी निश्चित आय और दी हुई कीमतों से अधिकतम सन्तोष को प्राप्त करने का प्रयत्न करता है । अधिकतम सन्तोष का यह बिन्दु ही उपभोक्ता के सन्तुलन का विन्दु कहलाता है ।   उपभोक्ता के सन्तुलन का अर्थ                ( Meaning of Consumer's Equilibrium ) - जब एक उपभोक्ता अपनी दी हुई आय को दी हुई कीमतों पर वस्तुओं के किसी निश्चित संयोग पर इस प्रकार खर्च करे कि उसको उस संयोग से अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त हो तो सम्बन्धित संयोग बिन्दु उपभोक्ता के लिए सन्तुलन का बिन्दु कहलाएगा । वह अन्य बातों ( उसकी आय व वस्तु...

स्थिर , अस्थिर और तटस्थ साम्य ( Stable , Unstable and Neutral Equilibrium )

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  1. स्थिर , अस्थिर और तटस्थ साम्य        ( Stable , Unstable and Neutral Equilibrium )  ( i ) स्थिर साम्य ( Stable Equilibrium ) — जैसा कि स्थिर शब्द से स्पष्ट है कि यह साम्य स्थिर होगा । भले ही प्रारम्भ में कुछ परिवर्तनों के कारण साम्य टूट सकता है , परन्तु साम्य के टूटते ही कुछ ऐसी शक्तियां कार्यशील हो जाती हैं , जो प्रारम्भिक साम्य को फिर से जोड़कर ‘ पहले वाली स्थिति ' तक पहुंचा देती हैं और फिर से साम्य स्थापित हो  जाता है ।  ( ii )अस्थिर साम्य( Unstable Equilibrium) - अस्थिर साम्य स्थिर साम्य के विपरीत है । अस्थिर साम्य में किसी प्रारम्भिक तत्व के द्वारा गड़बड़ी उत्पन्न कर दी जाती है । परिणामस्वरूप , यह तत्व साम्य को ' भंग कर देता है और निरन्तर वाधाओं के कारण दुबारा साम्य स्थापित नहीं हो सकता है । जहां प्रारम्भिक साम्य भंग हुआ नहीं वह वहीं से दूर हटता जाता है । संक्षेप में , अस्थिर साम्य में अर्थ व्यवस्था एक बार भंग होने पर पुनः अपने मूल स्थान पर नहीं लौटती , बल्कि वह किसी ' नयी साम्य - स्थिति ' को प्राप्त हो जाती है ।  ( iii ) तटस्थ साम्...

अर्थशास्त्र-साम्य की अवधारणा. (THE CONCEPT OF EQUILIBRIUM

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  1. साम्य की अवधारणा.            (THE CONCEPT OF EQUILIBRIUM )  साम्य शब्द दो लैटिन शब्दों के योग से बना है , जिसका अभिप्राय सन्तुलन से होता है । अर्थशास्त्र में साम्य अथवा सन्तुलन शब्द का महत्वपूर्ण स्थान है । अर्थशास्त्र में इस शब्द को भौतिकशास्त्र ( Physics ) से लिया गया है । भौतिकशास्त्र में साम्य शब्द का प्रयोग एक ऐसी दशा को प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है , जिसमें विरोधी शक्तियां आपस में एक - दूसरे को समाप्त कर देती हैं । अर्थशास्त्र में ' साम्य ' शब्द का अर्थ गतिहीनता से नहीं लगाया जाता है । यहां साम्य का अभिप्राय एक ऐसी स्थिति से है जिसमें कार्यशील शक्तियां एक - दूसरे के प्रभाव को नष्ट कर देती हैं , इसमें गति की अनुपस्थिति नहीं होती है , बल्कि गति की दर में परिवर्तन की अनुपस्थिति हो जाती है । '  साम्य ' की परिभाषा ( Definition of Equilibrium ) साम्य की प्रमुख परिभाषाओं को नीचे दिया जा रहा है :        ( i )      प्रो . जे . के . मेहता ( J. K Mehta ) के अनुसार  , “ अर्थशास्त्र में सा...

अर्थशास्र-उत्पादन संभावना वक्र एवं बढ़ती हुई अवसर लागत

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उत्पादन संभावना वक्र एवं बढ़ती  हुई अवसर लागत रेखाचित्र 2.1 को देखने से यह स्पष्ट हो जाएगा कि हम संभावना A से संभावना B को जाते हैं तो हमें कपड़े के एक हजार मीटर प्राप्त करने के लिए गेहूं को एक हजार इकाइयों को त्यागना होता है । दूसरे शब्दों में , इसका अर्थ यह है कि  कपड़े को एक हजार मीटर उत्पादित करने की अवसर - लागत गेहूं की एक हजार क्विटल हैं । पर ज्यों - ज्यों हम कपड़े का उत्पादन बढ़ाते हैं और B से आगे C को जाते हैं तो कपड़े की एक हजार अतिरिक्त मीटर प्राप्त करने के लिए दो हजार क्विटल अतिरिक्त गेहूं त्यागनी होती है । इसलिए B से C को जाने में एक हज़ार मीटर कपड़े की लागत  एक हजार कुंतल गेहूं होती है । ज्यों - ज्यों हम C से D. D से E और E से F की ओर आगे बढ़ते हैं . गेहू का त्याग जो हमें एक हजार मीटर अतिरिक्त कपड़े के प्राप्त करने के लिए करना होता है . बढ़ता जाता है । दूसरे शब्दों में , हम ज्यों - ज्यों कपड़े की अधिक मात्रा उत्पादित करते हैं और गेहूं की कम मात्रा उत्पादित करते हैं . तो कपड़े की सीमांत अवसर लागत ( marginal opportunity cost ) बढ़ती जाती है । ज्यों - ज्यों हम C से D...

रॉबिन्स द्वारा की गई अर्थशास्त्र की परिभाषा ( Robbins ' Definition of Economics )

  रॉबिन्स द्वारा की गई अर्थशास्त्र की  परिभाषा  ( Robbins ' Definition of Economics )  ब्रिटेन के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री लॉर्ड रॉबिन्स  ( Lord Robbins ) ने अर्थशास्त्र की परिभाषा अपनी पुस्तक ' Nature and Significance of Economic Science ' में दी जो कि बहुत समय तक सही और ठीक मानी जाती रही है । परंतु आजकल यह समझा जाता है कि रॉबिंस की परिभाषा भी आर्थिक सिद्धांत की विषय - वस्तु को ठीक तथा पर्याप्त रूप से व्यक्त नहीं करती । रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र के स्वरूप के प्रचलित दृष्टिकोण को चुनौती दी । हमने उनके ऊपर कुछ विरोधों का उल्लेख किया है । वह अपने से पूर्व की स्वीकृत और विख्यात अर्थशास्त्र की परिभाषाओं को वर्गीकृत   ( classificatory ) तथा अवैज्ञानिक ( unscientific ) कहते हैं । उनके मतानुसार “ भौतिक " शब्द ने अर्थशास्त्र को अनावश्यक रूप से सीमित कर दिया है और अर्थशास्त्र की कल्याण की धारणा में व्यापकता और सूक्ष्मता नहीं है । रॉबिंस का दृढ़ विश्वास है कि उसकी परिभाषा में इनमें से कोई भी त्रुटि नहीं पाई जाती है । रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र की परिभाषा इस प्रकार की...

उत्पादन संभावना वक्र का खिसकाव या स्थान - परिवर्तन / घुमाव ( Shifting / Rotation of Production Possibility Curve )

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  उत्पादन संभावना वक्र का खिसकाव या स्थान - परिवर्तन / घुमाव ( Shifting / Rotation of Production Possibility Curve )  उत्पादन संभावना वक्र निम्नलिखित कारणों से खिसकता  (Shift ) है अथवा उसका ( Rotation ) होता है :  (i) संसाधनों में परिवर्तन ( Change in Resources )  ( a ) संसाधनों में वृद्धि ( Resources are Increased ) : यदि संसाधनों में वृद्धि होती है , तब हम दोनों वस्तुओं का अधिक उत्पादन कर सकते हैं । तदनुसार , उत्पादन संभावना वक्र दाईं ओर खिसक जाता है , जैसे चित्र 3 में दिखाया गया है ( ab से a1 b1 की ओर खिसकाव ) : समय के साथ एक उद्यमी अधिक संसाधन पूँजी स्टॉक के रूप में प्राप्त कर सकता है । इससे उसकी उत्पादन क्षमता बढ़ती है । इसके अनुरूप PPC का विस्तार होता है या PPC दाईं ओर ab से a1b1 की ओर खिसक जाता है । ( b ) संसाधनों में कमी ( Resources are Decreased ) : यदि संसाधनों में कमी होती है , तब हम दोनों वस्तुओं का कम उत्पादन कर सकते हैं । तदनुसार , उत्पादन संभावना वक्र बाईं ओर खिसक जाता है , जैसे चित्र 4 में दिखाया गया है ( ab से a1 b1 की ओर खिसकाव ) : समय के साथ...

उत्पादन संभावना वक्र ( PPC ) / उत्पादन संभावना सीमा [ Production Possibility Curve ( PPC ) / Production Possibility Frontier]

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   उत्पादन संभावना वक्र ( PPC ) / उत्पादन संभावना सीमा  [Production Possibility Curve ( PPC ) / Production Possibility Frontier]  उत्पादन संभावना वक्र वह वक्र है जो दिए हुए संसाधनों तथा उत्पादन की तकनीक के आधार पर दो वस्तुओं के उत्पादनों की वैकल्पिक संभावनाओं को प्रकट करता है । ( The production possibility curve is the curve showing alternative production possibilities of two goods with the given resources and technique of production . ) इसे उत्पादन संभावना सीमा ( Production Possibility Frontier or Boundary ) भी कहा जाता है । अर्थशास्त्री इस रेखा को रूपांतरण रेखा ( Transformation Line ) या रूपांतरण वक्र ( Transformation Curve ) भी कहते हैं । उत्पादन संभावना वक्र दो वस्तुओं के विभिन्न संयोगों को प्रकट करता है जिनका उत्पादन दिए हुए संसाधनों द्वारा किया जाता है । यह इन मान्यताओं पर आधारित हैं : ( i ) संसाधनों का पूर्ण एवं कुशल प्रयोग किया जाता है तथा ( ii ) उत्पादन की तकनीक स्थिर रहती है । ( Production possibility curve shows different combinations of two goods which ...