हिंदी कविता-"गजब का बनाया खुदा ने हमें भी"
खुदा ने बनाया गजब का हमें भी, दिए जुल्म उसके सहे जा रहा हूँ; इन्तेहा ले रहा सब्र की ओ मेरे, और मैं हूँ कि हँसे पर हँसे जा रहा हूँ। खुले में भी दीपक जलाएं हैं हमने, शर्त मगरूर हवाओं से लगाये हैं हमने; खुद के बुझने का डर अब कहाँ है हमें, नेह दुश्मन से अपने जो लगाये है हमनें। शुक्र है हाथ तूने रखा मेरे सर पे, पर तेरे हाथ इतने अलसाये क्यों हैं? अनगिनत फूल खुशियों की बगिया में तेरे, पर जो गिरे मेरे दामन में, ओ मुरझाए क्यों है? तेरी दुनिया का दस्तूर सदा ये रहा है, हर वक्त इसका चेहरा बदलता रहा है; पर तेरी दुनियाँ में मैं भी रहता हूँ, भगवान! क्यों मेरा भाग्य सदा से निकम्मा रहा है। जिंदगी की भीड़ में खोता चला गया, ...