पहचान सको तो पहचान लो, मैं हूँ प्राइवेट हिंदी मीडियम स्कूल का एक शिक्षक।वैसे हमें पहचानना बहुत आसान है। चेहरे पर चिंताओं की सलवटें, माथे पर घर और विद्यालय में सामंजस्य बैठाने की जद्दोजहद, एक साधारण सा कपड़ा जो बदन पर हफ्ते भर चिपका रहता है।हाथ में एक टूटी हुई साईकल,और पैरों में अपने मालिक से अथाह प्रेम करने वाले घिसे हुए जूते जो मानो ये कहना चाह रहा हो कि मालिक मुझे अपने से अलग मत करना।मेरी और आपकी की स्थिति एक जैसी है;मैं घिस कर भी अलग होना नही चाहता और तुम थक कर भी जीने की जिद पर अड़े हो।वैसे तुम चाह कर भी मुझसे आसानी से अलग नही हो सकते क्योंकि तुम्हारी तनख्वाह तो मिलने के चार या पांच दिन बाद ही समाप्त हो जाती है बाकी 24 या 25 दिन तक तो तुम बाकी चीजों का जुगाड़ करने में इधर-उधर भागते फीरते रहते हो।जब तुम दुसरो से पैसा मांगते हुए गिड़गिड़ाते हो तो मुझे बड़ा सुकून मिलता है क्योंकि जिन जरूरतों की दुहाई देकर तुम पैसे दूसरों से माँगते हो उसमे तो मेरा नाम ही नही रहता।दिल को बड़ा सुकून मिलता है कि चलो इस महीने तक तो मेरा अस्तित्व बचा रहेगा।लेकिन फिर अगले महीने आते- आते मेरा मन अशांत हो जाता है
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