आत्म पीड़ा ! एक प्राइवेट हिंदी माध्यम स्कूल के शिक्षक की

 पहचान सको तो पहचान लो, मैं हूँ प्राइवेट हिंदी मीडियम स्कूल का एक शिक्षक।वैसे हमें पहचानना बहुत आसान है।
चेहरे पर चिंताओं की सलवटें, माथे पर घर और विद्यालय में सामंजस्य बैठाने की जद्दोजहद, एक साधारण सा कपड़ा जो  बदन पर हफ्ते भर चिपका रहता है।हाथ में एक टूटी हुई साईकल,और पैरों में अपने मालिक से अथाह प्रेम करने वाले घिसे हुए जूते जो मानो ये कहना चाह रहा हो कि मालिक मुझे अपने से अलग मत करना।मेरी और आपकी की स्थिति एक जैसी है;मैं घिस कर भी अलग होना नही चाहता और तुम थक कर भी जीने की जिद पर अड़े हो।वैसे तुम चाह कर भी मुझसे आसानी से अलग नही हो सकते क्योंकि तुम्हारी तनख्वाह तो मिलने के चार या पांच दिन बाद ही समाप्त हो जाती है बाकी 24 या 25 दिन तक तो तुम बाकी चीजों का जुगाड़ करने में इधर-उधर भागते फीरते रहते हो।जब तुम दुसरो से पैसा मांगते हुए गिड़गिड़ाते हो तो मुझे बड़ा सुकून मिलता है क्योंकि जिन जरूरतों की दुहाई देकर तुम पैसे दूसरों से माँगते हो उसमे तो मेरा नाम ही नही रहता।दिल को बड़ा सुकून मिलता है कि चलो इस महीने तक तो मेरा अस्तित्व बचा रहेगा।लेकिन फिर अगले महीने आते- आते मेरा मन अशांत हो जाता है कि कही इस महीने मेरा आखिरी तो नही।लेकिन अब मन उतना सशंकित नही रहता क्योंकि पिछले चार सालों में तुमने मेरा नाम ही नही लिया।एक दिन तुम्हारी सैलरी की स्लिप  तुम्हारे हाथों से छूटकर नीचे मेरे पास आ गयी थी तो मैंने इसे पढ़ लिया था और तब से और आश्वस्त हो  गया हूँ कि मेरी और तुम्हारी जोड़ी अभी और चलने वाली है।कल मैंने आपको अपनी पत्नी से बात करते हुए सुना था कि तुम कोई ट्यूशन पढ़ाने वाले हो।पर तुम्हें ट्यूशन मिलेगा कहाँ ?ट्यूशन तो अंग्रेजी माध्यम के बच्चे पढ़ते है।और मान लो एकाध ट्यूशन तुम्हे मिल भी गया तो क्या होगा?हिंदी माध्यम के बच्चे फीस ही कितना देते है।सौ पचास रुपये देने में ही उनका आर्थिक बैलेंस गड़बड़ होने लगता है।और मान लो सौ पचास रुपये मिल भी गए तो क्या होगा? स्कूल से ट्यूशन की जो मैराथन दौड़ तुम अपनी टूटी हुई साईकल से लगाओगे,ये पैसे तो उसकी मरम्मत में ही खर्च हो जाएंगे।तुम्हारी तरह तो तुम्हारे बच्चों के जूते भी पुराने हो गए है और फटे हुए भी है।खैर उनका नाम सरकारी विद्यालय में लिखा कर अच्छा ही  किया, कम से कम ड्रेस और बैग के साथ जूते भी मिल जाएंगे।लेकिन मुझे एक बात समझ मे नही आती की तुम खुद प्राइवेट स्कूल में पढ़ाते हो और तुम्हारे बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं।ओह! क्षमा करना अगर गलती से कोई गुस्ताखी हुई हो तो।मैं तुम्हारा दिल दुखाना नही चाहता हूँ।उस दिन जब तुम्हारी सैलरी की स्लिप गिर कर नीचे तुम्हारे पैरो के पास आ गयी थी तो मैंने पढ़ा था।इतनी कम सैलरी में दो वक्त की रोटी  जुटाना तो मुश्किल है प्राइवेट स्कूल की फीस क्या खाक भरोगे।दुनिया का ये आठवां अजूबा है कि दुनिया भर को शिक्षा देने वाला अपने ही बच्चे को उचित शिक्षा नही दे सकता है।खैर मेरी बात छोड़ो,तुम पाठको को अपनी पहचान बताओ।जूते के कटु और सत्य शब्दो ने मेरे आत्मा को गहराई तक छेड़ दिया है।मैं अपने सभी पाठकों से  क्षमा चाहता हूँ की आज मैं अपनी पहचान के बारे में और कुछ बताने में असमर्थ हूँ।शायद मुझे अपनी पहचान के बारे में और विचार करने की आवश्यकता है।शायद यह भी विचार करने की आवश्यकता की मेरी कोई पहचान है भी या नही। किसी और दिन मैं यह बताने का प्रयास करूंगा।धन्यबाद!

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