आज अधिक काम होने के कारण,मुझे घर से जल्दी निकलना था।आज जन्माष्टमी का दिन भी था।शाम को घर कब वापस आऊंगा कोई ठिकाना नही था।इसलिए सोचा की सुबह ही भगवान का दर्शन कर लूं,शाम को जो होगा देखा जाएगा।मैं स्नान करके मंदिर गया और दर्शन किया।पंडित जी ने प्रसाद ला के दिया,जिसे मैंने माथे पर चढ़ाया और खा गया।आज पंडित जी पैर से हल्का लंगड़ाकर चल रहे थे और चेहरे को भी रामनामी से ढंके हुए थे।लग रहा था उनकी तबियत ठीक नही थी।मैना पूछा भी"पंडित जी,सब कुशल मंगल तो है,आज आपकी की तबियत कुछ खराब लग रही है।"पंडित जी ने सिर हिलाकर सहमति प्रकट की लेकिन कुछ बोले नही।वैसे भी पंडित जी बोलते बहुत कम थे।जब से वह इस मंदिर पर आए थे तब से ऐसे ही थे।लोगो से बहुत कम मिलते जुलते थे।वैसे इनको आये हुए पंद्रह साल हो गए थे।मंदिर के निर्माण को भी पंद्रह साल हो गए थे।मंदिर की स्थापना के एक दो दिन बाद ही पंडित जी आ गए थे।तब से मंदिर के पूजा पाठ का काम यहीं संभाल रहे थे।मुझे आज भी वह दिन याद है जब हम मंदिर में स्थापना के लिए भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति लेने शहर गए थे।बहुत तराशने के बाद हमें यह मूर्ति पसंद आयी।मूर्...
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