भगवान मारा गया(God was killed)

    आज अधिक काम होने के कारण,मुझे घर से जल्दी निकलना था।आज जन्माष्टमी का दिन भी था।शाम को घर कब वापस आऊंगा कोई ठिकाना नही था।इसलिए सोचा की  सुबह ही भगवान का दर्शन कर लूं,शाम को जो होगा देखा जाएगा।मैं स्नान करके मंदिर गया और दर्शन किया।पंडित जी ने प्रसाद ला के दिया,जिसे मैंने माथे पर चढ़ाया और खा गया।आज पंडित जी पैर से हल्का लंगड़ाकर चल रहे थे और चेहरे को भी रामनामी से ढंके हुए थे।लग रहा था उनकी तबियत ठीक नही थी।मैना पूछा भी"पंडित जी,सब कुशल मंगल तो है,आज आपकी की तबियत कुछ खराब लग रही है।"पंडित जी ने सिर हिलाकर सहमति प्रकट की लेकिन कुछ बोले नही।वैसे भी पंडित जी बोलते बहुत कम थे।जब से वह इस मंदिर पर आए थे तब से ऐसे ही थे।लोगो से बहुत कम मिलते जुलते थे।वैसे इनको आये हुए पंद्रह साल हो गए थे।मंदिर के निर्माण को भी पंद्रह साल हो गए थे।मंदिर की स्थापना के एक दो दिन बाद ही पंडित जी आ गए थे।तब से मंदिर के पूजा पाठ का काम यहीं संभाल रहे थे।मुझे आज भी वह दिन याद है जब हम मंदिर में स्थापना के लिए भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति लेने शहर गए थे।बहुत तराशने के बाद हमें यह मूर्ति पसंद आयी।मूर्ती इतनी सुंदर थी कि जैसे भगवान श्री कृष्ण साक्षात खड़े हो।ऐसे लग रहा था कि कलाकार ने भगवान की आत्मा को ही मूर्ति में सील दिया हो।वहाँ जितनी भी मूर्तियाँ थी उनमें यह मूर्ति सबसे सुन्दर थी।लेकिन यह बाकी मूर्तियों से चार हजार महंगी थी।पंद्रह साल पहले चार हज़ार का महत्व था।जब हमने मोलभाव करना चाहा तो मूर्तिकार ने कहा,"साहब,इस मूर्ति को बनाने में बहुत मेहनत लगी है,मैं आपको मूर्ति नही, साक्षात भगवान दे रहा हूँ।आप इस मूर्ति को ले जाइये,आप का सदैव कल्याण होगा।"मूर्तिकार की बात सौ टका सही थी।जब से मूर्ति की स्थापना मंदिर में हुई थी।तब से हमारे जीवन मे सब शुभ हो रहा था।अगर कही जाने से पहले भगवान का दर्शन कर लिया जाय तो सब शुभ होता था।मंदिर की स्थापना के एक या दो दिन बाद ही पंडित जी आ गए थे।हम लोगों को भी नियमित पूजा पाठ करने के लिए किसी की आवश्यकता थी।इसलिए हम लोगो ने उन्हें मंदिर पर रख लिया।उनके खाने की व्यवस्था किसी न किसी के द्वारा हो जाती थी।पंडित जी कहाँ से आये थे, किसी को कुछ भी पता नही था।वह लोगो से बात ही बहुत कम करते थे अतः उनके बारे में जानने सुनने का मौका ही नही मिलता था।पंडित जी बीच-बीच मे एकाक हफ्ते के लिए कहीं गायब भी हो जाते थे।कहाँ जाते थे किसी को पता नहीं था।पर हम सभी को अपने काम से मतलब था।वे कहाँ आते हैं और कहाँ जाते हैं क्या फर्क पड़ता है।खैर प्रसाद लेकर मैं चल दिया।जाते-जाते पंडित जी से कहता गया कि यदि कोई दिक्कत होगी तो बताइयेगा।शाम को जन्माष्टमी का आयोजन भी था।अतः कोशिस ये थी कि जल्दी से अपना काम निपटा के मैं वापस आ सकूँ तथा आयोजन में सम्मिलित हो संकूँ।
        सभी काम निपटा के मैं शाम तक वापस आ गया।श्री कृष्ण जन्माष्टमी की तैयारियां चल रही थी।जरूरी सामानों को जुटाया जा रहा था।हर साल अच्छी खासी भीड़ जुटती थी।प्रसाद को मंदिर में रखने की तैयारी हो ही रही थी तभी पुलिस की दस से पंद्रह गाड़ियां तेजी से आती है और मंदिर को चारों तरफ से घेर लेती है।आस-पास के सभी लोगो को दूर हटाने लगती है।किसी को समझ मे नही आ रहा था कि क्या हो रहा था।सभी पुलिस वाले अपनी पोजीशन लिए हुए थे।कोई कुछ नही बता रहा था।एक पुलिस वाला जो सबसे दूर पोजीशन लिए हुए था,बहुत पूछने पर बस इतना कहा कि हम भगवान को गिरफ्तार करने आये है।पुलिस को पंद्रह साल से तलाश थी।मुझे तुरंत उस मूर्तिकार की बात याद आई,जिसने मूर्ति देते समय कहा था कि मैं साक्षात भगवान को दे रहा हूँ इसीलिए एक पैसा कम नही करूँगा।पर हमें समझ में ये नही आ रहा था कि ये लोग भगवान को क्यों गिरफ्तार करने आये हैं।भला भगवान को कोई गिरफ्तार भी कर सकता है।मष्तिष्क में तर्कों का बवंडर उठ रहा था लेकिन वास्तविक बात क्या है कुछ समझ मे नही आ रहा था।तभी एक पुलिस अधिकारी को माइक से चिल्लाते हुए कहा,"भगवान,हम जानते हैं तुम इस मंदिर में पंद्रह साल से छुपे हुए हो।हम तुम्हे चेतावनी दे रहे हैं कि चुपचाप अपने को हमारे हवाले कर दो नही तो मारे जाओगे।हम सभी लोग दूर से यह घटना देख रहे थे और सोच रहे थे कि पुलिस सठिया गई है क्या जो भगवान को गिरफ्तार करने जा रही है।पर हम कर भी क्या सकते थे मूकदर्शक बने देखते रहे।तभी एक पुलिस वाला पोजीशन लेते हुए मंदिर की तरफ बढ़ता है तभी अंदर से गोली चलने की आवाज आती है और गोली पुलिस वाले के सिर के पास से गुजरती है।हम सभी स्तब्ध हो गए कि ये क्या हो रहा है।भगवान खुद गोली चला रहे हैं।हम उत्सुकता पूर्वक सब देखते रहे।तभी दोनो तरफ से गोलियां तड़तड़ाने लगती है।लगभग आधे घंटे तक गोलियां चलती है।फिर अचानक मंदिर के अंदर से जोर से चिल्लाने की आवाज आती है और फिर सन्नाटा छा जाता है।मंदिर से गोलियां चलनी बंद  हो जाती है।तीन चार पुलिस वाले पोजीशन लिए हुए मंदिर की तरफ बढ़ते हैं और धीरे-धीरे मंदिर के गर्भ में प्रवेश करते हैं।लगभग पांच मिनट बाद  दो पुलिस वाले बाहर आते हैं और जोर से चिल्लाते हुए अपने अधिकारी से कहते हैं,"सर,भगवान मार गया।"फिर सभी पुलिस वाले मंदिर के पास पहुंचते है।वहाँ अधिकारी अपनी कानूनी कार्यवाही पूरी कर रहे थे।धीरे-धीरे जनता भी मंदिर के पास जमा हो रही थी। मैं भी वहाँ जा पहुंचा।लोगों के भीड़ के बीच से मैने झाँका।मैंने जो नजारा देखा,उसे देख कर मेरे होश उड़ गए।पूजारी जी की लाश जमीन पर पड़ी हुई है और खून मंदिर में फैला हुआ था।तीन या चार गोलियां पुजारी जी के आर-पार हो गयी थी।मेरी समझ मे अब भी कुछ नही आ रहा था।मन सब कुछ जानने के लिए बेचैन हो रहा था।तभी मैंने एक अधिकारी को दूसरे अधिकारी से बात करते हुए सुना।अधिकारी ने कहा,"इसका नाम भगवान दास है।यह बिहार का एक खूंखार अपराधी है।इस पर चार हत्याओं के आरोप है।पुलिस को इसकी पंद्रह साल से तलाश थी।चार -पाँच दिन पहले यह अपने घर गया था।हमने इसे पकड़ने की कोशिश की लेकिन यह पुलिस को चकमा देकर भाग गया।लेकिन भागते-भागते गोली इसके पैर में लग गई थी।तभी मेरा ध्यान पंडित जी के पैरों पर गया जिसमें पट्टी बंधी हुई थी।यही कारण था कि पंडित जी लंगड़ाकर रहे थे, लेकिन पूछने पर कोई जवाब नही दिया था।मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा था कि हम लोगो ने पूजा केरने के लिए अपराधी को पंद्रह साल से रखा था और हम पहचान न सके।किस पर विश्वास किया जाय और किस पर विश्वास न किया जाय,समझ में नही आता।आज कितने पापी,अपराधी और व्यभिचारी ऐसे मंदिरों और मठों में भरे पड़े है।रोज समाचार पत्र में ऐसे पुजारियों और बाबाओं के काल चिठ्ठा जनता के सामने उजागर होता जा रहा है।जनता का विश्वास दिन प्रतिदिन समाप्त होता जा रहा है।अब तो ऐसा लगता है कि ये सभी मिलकर एक दिन भगवान को मार ही डालेंगे।

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