हिंदी कविता--माँ

                                       
ईश्वर की बनाई सृस्टि में तू सबसे सुंदर चीज है माँ
मन पवित्र गंगा जल सा, गंगा जल शीतल नीर हो माँ।

तुम छाँव हो जेठ दुपहरी की,जाड़े में धूप समान हो माँ।
तुम मधुर समीर बसंत का हो,धरती पर सुधा समान हो माँ।

कुछ और न मागु मैं रब से,आँचल जो  तेरा मेरे सर पर रहे,
हर वक्त सदा तुम साथ रहो,जब तक नदिया जल धार बहे।

तुम चीज हो क्या उनसे पूछो, माँ जिनके है पास नही,
सब कुछ देने को तत्पर है, मिल जाये अगर वो जग में कही।

आज भी हर नारी में माँ कौसल्या बसती है,
पर क्या किसी पुत्र में भी छबि राम प्रभु सी दिखती है।

दुनिया मे कोई चीज नही जो दूध का तेरे मोल करे,वह पूत कपूत कब न रहे,जो खुद पे तुझको बोझ कहे।

असहनीय शीत में भी सीने से लगा बदन की गर्मी दी,
चिलचिलाती धूप में भी, आँचल की हवा ठंडी दी।

तेरा आँचल जो सलामत है तो जन्नत क्या है, 

तेरी ममता से बड़ी दुनिया में दौलत क्या है।

तुम आदरणीय,तुम परमपूज्य, इश्वर समान महान हो माँ
मन पवित्र गंगा जल सा,गंगा जल शीतल नीर हो माँ

मन पवित्र गंगा जल सा ,गंगा जल शीतल नीर हो माँ

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