तुम धन्ना सेठ की बेटी हो,
मैं गँवरू गंवार का बेटा हूँ
तुम नरम बिस्तरों पर सोती,
मैं सुखी जमीन पर लेटा हूँ।
तेरे घर मे छप्पन भोग पके ,
मेरे घर में सूखी रोटी है
सूरज सा चमके भाग्य तेरा,
पर मेरी किस्मत खोटी है।
चाँद समान मुख मण्डल तेरा,
आँखे भी सितारों जैसी है।
तू चले चाल हिरणी की तरह,
और वाणी भी कोयल जैसी है।
पर मैं तो काला कौआ हूं,
ना रंग सही न रूप सही
फिरता हूँ मारा मारा,
ना आसरा कहीं ना ठौर कहीँ।
तूम कल-कल बहती एक नदिया,
मैं ठहरा तालाब का पानी हूँ
तुम झिल-मिल करती रात चांदनी ,
मैं काली रात अँधियारी हूँ।
(Haravendra Pratap Singh,assistant teacher-DCV inter college Saranath,Varanasi)
मैं गँवरू गंवार का बेटा हूँ
तुम नरम बिस्तरों पर सोती,
मैं सुखी जमीन पर लेटा हूँ।
तेरे घर मे छप्पन भोग पके ,
मेरे घर में सूखी रोटी है
सूरज सा चमके भाग्य तेरा,
पर मेरी किस्मत खोटी है।
चाँद समान मुख मण्डल तेरा,
आँखे भी सितारों जैसी है।
तू चले चाल हिरणी की तरह,
और वाणी भी कोयल जैसी है।
पर मैं तो काला कौआ हूं,
ना रंग सही न रूप सही
फिरता हूँ मारा मारा,
ना आसरा कहीं ना ठौर कहीँ।
तूम कल-कल बहती एक नदिया,
मैं ठहरा तालाब का पानी हूँ
तुम झिल-मिल करती रात चांदनी ,
मैं काली रात अँधियारी हूँ।
(Haravendra Pratap Singh,assistant teacher-DCV inter college Saranath,Varanasi)
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