किसी काम से एक हफ्ते के लिए मैं शहर से बाहर गया था।सातवाँ दिन आते आते मेरा मन घर जाने के लिए बेचैन होने लगा।जब से वह मेरी जिंदगी में आयी थी तब से कभी इतने दिन उससे अलग नहीं रहा।बस मन करता कि काश!उसकी एक झलक मिल जाती तो मन को सुकून मिल जाता।ज्योहीं मेरा काम समाप्त हुआ त्योंहि मैंने ट्रेन पकड़ा और घर के लिए चल दिया।बस मन मे यही था कि किसी तरह घर पहुंच जाऊं और उसके सुंदर से चेहरे को निहार सकूँ।लेकिन ट्रैन तो थी अपनी ही गति से चलने वाली,कहाँ किसी की सुनने वाली।
आखिरकार दस घंटे की दूरी तय करके मैं अपने गाँव पहुचा और फिर आटोरिक्शा करके घर पहुंचा।घर मे प्रवेश किया लेकिन बरामदे में कोई दिखाई नहीं दिया।लग रहा था सभी लोग आँगन में थे।बरामदे से सटा हुआ एक तरफ मेरा कमरा था।मैं चुपके से कमरे की तरफ बढ़ा।कमरे में वह अकेली गहरी नींद में सो रही थी।मैं दबे पांव उसके सिरहाने पहुँच गया।मैं अपने सिर को झुका कर उसके मासूम चेहरे को एक टक देखने लगा।एक परमानन्द की अनुभूति हो रही थी।उसकी आंखें उसकी पलको के नीचे ऐसे शांत पड़ी हुई थी जैसे किसी सागर का पानी तुफान आने से पहले शांत रहता है। उसकी पलको के नीचे सोती हुई आंखों को मन भर निहारने के बाद मेरा ध्यान उसके पतले,कोमल और गुलाबी होंठो की तरफ गया जो ऐसे लग रहे थे जैसे कि भगवान ने गुलाब की पंखुड़ियों को काट कर लगा दिया है।अब मुझसे नही रह गया।उसके होंठों का चुम्बन करने के लिए मेरा मन बेताब हो गया।मैंने अपने चेहरे को झुकाया और अपने होंठों को उसके होंठों के पास ले गया।उसके होंठो को अपने होंठों से स्पर्श ही करने वाला था कि मेरी गर्म सांसे उसके चेहरे से टकराई और उसकी आंखें खुल गई।उसने सीधे मेरी आँखों में देखा।थोड़ी देर तो आश्चर्य से वह मुझे देखती रही,मैंने सोचा कि वह मुझपर नाराज होगी लेकिन नही वह धीरे से मुस्कुराई।अपनी बाहों को मेरे गर्दन के दोनों तरफ रखा और अपनी तरफ मुझे खिंचते हुए अपने चेहरे को थोड़ा उठाते हुए अपने कोमल और नाजुक होंठों से मेरे होंठों को स्पर्श किया।उसके होंठों के स्पर्ष से मेरा तन मन झंकृत हो उठा,ऐसा लग जैसे दस घण्टे की थकान छूमंतर हो।मेरे शरीर मे एक अलग सी ऊर्जा उत्पन्न होती हुई सी प्रतीत हुई।फिर अचानक थोड़ा नाराज होते हुए उसने पूछा,"पापा,मैं आपसे बात नही करूँगी।आप मुझे छोड़ के कहा चले गए थे?मैं कब से आपका इन्तजार कर रही थी।"मैने उसे उठाकर सीने से लगाते हुए कहा,"मेरी बच्ची!अब मैं कभी तुम्हे छोड़ कर नही जाऊंगा"
आखिरकार दस घंटे की दूरी तय करके मैं अपने गाँव पहुचा और फिर आटोरिक्शा करके घर पहुंचा।घर मे प्रवेश किया लेकिन बरामदे में कोई दिखाई नहीं दिया।लग रहा था सभी लोग आँगन में थे।बरामदे से सटा हुआ एक तरफ मेरा कमरा था।मैं चुपके से कमरे की तरफ बढ़ा।कमरे में वह अकेली गहरी नींद में सो रही थी।मैं दबे पांव उसके सिरहाने पहुँच गया।मैं अपने सिर को झुका कर उसके मासूम चेहरे को एक टक देखने लगा।एक परमानन्द की अनुभूति हो रही थी।उसकी आंखें उसकी पलको के नीचे ऐसे शांत पड़ी हुई थी जैसे किसी सागर का पानी तुफान आने से पहले शांत रहता है। उसकी पलको के नीचे सोती हुई आंखों को मन भर निहारने के बाद मेरा ध्यान उसके पतले,कोमल और गुलाबी होंठो की तरफ गया जो ऐसे लग रहे थे जैसे कि भगवान ने गुलाब की पंखुड़ियों को काट कर लगा दिया है।अब मुझसे नही रह गया।उसके होंठों का चुम्बन करने के लिए मेरा मन बेताब हो गया।मैंने अपने चेहरे को झुकाया और अपने होंठों को उसके होंठों के पास ले गया।उसके होंठो को अपने होंठों से स्पर्श ही करने वाला था कि मेरी गर्म सांसे उसके चेहरे से टकराई और उसकी आंखें खुल गई।उसने सीधे मेरी आँखों में देखा।थोड़ी देर तो आश्चर्य से वह मुझे देखती रही,मैंने सोचा कि वह मुझपर नाराज होगी लेकिन नही वह धीरे से मुस्कुराई।अपनी बाहों को मेरे गर्दन के दोनों तरफ रखा और अपनी तरफ मुझे खिंचते हुए अपने चेहरे को थोड़ा उठाते हुए अपने कोमल और नाजुक होंठों से मेरे होंठों को स्पर्श किया।उसके होंठों के स्पर्ष से मेरा तन मन झंकृत हो उठा,ऐसा लग जैसे दस घण्टे की थकान छूमंतर हो।मेरे शरीर मे एक अलग सी ऊर्जा उत्पन्न होती हुई सी प्रतीत हुई।फिर अचानक थोड़ा नाराज होते हुए उसने पूछा,"पापा,मैं आपसे बात नही करूँगी।आप मुझे छोड़ के कहा चले गए थे?मैं कब से आपका इन्तजार कर रही थी।"मैने उसे उठाकर सीने से लगाते हुए कहा,"मेरी बच्ची!अब मैं कभी तुम्हे छोड़ कर नही जाऊंगा"
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