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प्रकट अधिमान सिद्धांत(The Theory Of Revealed Preference)

    प्रकट अधिमान सिद्धांत 

 The Theory of Revealed Preference

 प्रकट अधिमान सिद्धांत के प्रतिपादक प्रोफेसर सैमुअल्सन अपने सिद्धांत को 'मांग के तार्किक सिद्धांत का तीसरा मूल' मानते हैं। प्रोफेसर  सैैैैैैमुअल्सन का सिद्धांत मांग के नियम की व्यवहारात्मक दृष्टिकोण से व्याख्या करता है। इस सिद्धांत से पूर्व मार्शल द्वारा विकसित उपयोगिता विश्लेषण हिक्स- एलन का उदासीनता वक्र विश्लेषण उपभोक्ता के मांग वक्र की मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से व्याख्या करते हैं।

        प्रोफेसर सैम्यूलसन ने उपभोक्ता व्यवहार की दो मान्यताओं के आधार पर मांग के नियम की मूलभूत परिणाम निकालने का प्रयास किया है। यह मान्यताएं हैं:

(1) अनेक उपलब्ध विकल्पों में से उपभोक्ता एक निश्चित चुनाव करता है। दूसरे शब्दों में वह अपने निश्चित अधिमान को प्रकट करता है यह मान्यता इस सिद्धांत को सबल क्रम की श्रेणी में रख देती है।

(2) यदि अनेक विकल्पों में से संयोग B की तुलना एक परिस्थिति में संयोग A का चुनाव कर लिया गया है तो किसी अन्य परिस्थिति में यदि संयोग A तथा सहयोग B में पुनः चुनाव करना हो तो उपभोक्ता संयोग B को नहीं चुनेगा। यह मान्यता उपभोक्ता व्यवहार की सामंजस्यता की दशा को स्पष्ट करतीहै। यह सिद्धांत उपभोक्ता के व्यवहार में संक्रामकता को भी स्पष्ट करता है जो सामंजस्यता कि मान्यता का ही  एक विस्तृत रूप है। संक्रामकता की धारणा यह बताती है कि यदि  संयोग A को B तुलना में, संंयोग B को C  की तुलना में सामंजस्यता के आधार पर चुना गया है तो उपभोक्ता संयोग A तथा C में से प्रत्येक दशा में संयोग A को ही चुनेगा। इस प्रकार सैम्यूलसन का प्रकट अधिमान सिद्धांत बाजार की विभिन्न कीमत-आय स्थितियों में उपभोक्ता के वास्तविक व्यवहार के आधार पर उपभोक्ता के मांग वक्र की व्याख्या करता है। इसी कारण प्रोफेसर तपस  मजूमदार ने प्रोफेसर सैमुअल्सन को व्यवहारवादी क्रमवाचक बताया है  तथा प्रोफेसर सैमुअल्सन के सिद्धांत को व्यवहारवादी क्रम वाचक उपयोगिता सिद्धांत के नाम से पुकारा।

 प्रकट अधिमान परिकल्पना

Revealed Preference Hypothesis

 प्रोफेसर सैम्यूलसन ने  अपने लेख 'Consumption Theory in Terms of Revealed Preference'(1948)  में अपनी परिकल्पना को निम्नलिखित शब्दों में स्पष्ट किया है।

       " यदि किसी दिए गए संयोग बिंदु A  से होती हुई दी गई कीमत अनुपात के बराबर ढाल वाली सीधी कीमत या बजट रेखा खींची जाए तो उस कीमत रेखा पर या उसके अंदर वस्तु के सभी संयोग वास्तव में खरीदे गए संयोग के अधिमान में खरीदे जा सकते थे, परंतु वह नहीं खरीदे गए। इस प्रकार वे सभी A की तुलना में निम्न घोषित किए गए।"

चित्र 1 में इस परिकल्पना को प्रदर्शित किया गया है।


X  अक्ष पर वस्तु x  तथा Y  अक्ष पर Y  वस्तु दिखाई गई है। दोनों वस्तुओं के कीमत अनुपात के ढाल के बराबर होती हुई कीमत रेखा LM  खींची गई है। त्रिभुज OLM उपभोक्ता के चुनाव का क्षेत्र है जो उसकी दी हुई कीमत-आय स्थिति LM पर तथा उसके अंदर दोनों वस्तुओं के विभिन्न संयोगो को दर्शाता है। ऐसी दशा में उपभोक्ता संयोग A, B, C तथा D में  से किसी भी एक संयोग का चुनाव कर सकता है। संयोग E चुनाव क्षेत्र से बाहर होने के कारण उपभोक्ता को प्राप्त नहीं है। उपभोक्ता यदि A  को चुनता है तो वह B, C, तथा D की तुलना में A प्रकटित अधिमानित है  क्योंकि अन्य संयोगों को वह A की तुलना में निम्न घोषित कर देता है। इस प्रकार उपभोक्ता सबल क्रमबद्धता कि स्थिति में विभिन्न संयोग A,B,C,D  के मध्य उदासीन नहीं हो सकता वरन संयोगों से वह A के लिए अधिमान प्रकट करके उसे श्रेष्ठतम संयोग की श्रेणी में ले आता है।


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