एक समय था जब उत्तरप्रदेश में तूती बोलती थी गुंडों की
जब चाहे तब ढेर लगा देते थे जनमानस के नरमुंडों की।
अब बदल चुकी है हवा फिजा की,सब जनमानस हर्षाए हैं,
जब से बाबा ने अपने कोड़ें इन गुंडों पर बरसाएं है।
आम लोगों की बात ही क्या,इनसे प्रसाशन भी घबराता था,
मिल जाता हर वो शख्स मिट्टी में जो इनसे टकराता था।
कर्तव्य परायण जो भी अधिकारी इन पर कार्यवाही करता था,
मुफ्त में जाती नौकरी इनकी,और कुटुंब भूखों मरता था।
पूर्व की सरकारों से पोषित होकर बाहुबली बने अहमद,अंसारी दुबे,
कुछ निकल लिए,कुछ भीख मांगे प्राणों की, जब बाबा जी लागेन कुटें।
मिट्टी में मिलानेको इनको,बाबा ने कमर को बांध लिया है,
साम,दम और दंड भेद को ,बाबा ने अब साध लिया है।
अगर सुधर गए तो स्वागत है,वरना अंजाम बुरा होगा,
ना रहेगी कोई कोर कसर ,सबका इंतजाम पूरा होगा।
जिस गति से तूने हे बाबा,यह सफाई अभियान चलाया है,
बिना टिकट दिए इन सबको यमलोक तलक भिजवाया है,
अगर ऐसी ही रही गति आपकी तो सभी सपर्चट्ट हो जाएंगे,
सभी नरक में मिलकर एक साथ, बाबा बाबा गाएंगे।
श्रीमान अच्छी कविता लिखी है आपने।
ReplyDeleteमैं आपका ब्लॉग पोस्ट पढ़ता हूँ।
मैं भी ब्लॉग करना चाहता हूँ पर idea नहीं है। थोड़ा हेल्प करें।
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