एक बार एक साधु एक गाँव से गुजर रहा था।अचानक उसे प्यास लगी और उसने एक कुँए के पास जाकर वहां पानी भर रहे लोगों से पीने के लिये पानी मांगा लेकिन गांव वालों ने पानी देने से मना कर दिया।साधू लोगों को यह श्राप देकर चला गया है कि यदि कल से कोई भी व्यक्ति इस कुएं का पानी पियेगा तो वह पागल हो जायेगा।लोगों ने साधू कि बात पर विश्वास नही किया,लेकिन एक व्यक्ति कुछ पानी घड़े में चुराकर पहाडी पर रख दिया और वही पानी पीने लगा।सुबह होने पर सभी गांव वालों ने साधु की बात पर ध्यान न देकर पानी पी लिया और पागल हो गए।केवल एक व्यक्ति ही गांव में सही सलामत था जिसने पानी नही पिया था।लेकिन गांव के सारे पागल मिलकर उस व्यक्ति को पागल कहने लगे जो सच मे सही था।कुछ दिन बाद उस व्यक्ति का पानी भी समाप्त हो गया और वह भी कुएं का पानी पीने के लिए बाध्य हो गया और वह भी पागल हो गया।उस व्यक्ति के भी पागल हो जाने पर गांव वाले बड़े खुश हुए और कहा कि हाँ,अब यह बिल्कुल ठीक हो गया और इसका पागलपन भी दूर हो गया।
प्रकट अधिमान सिद्धांत The Theory of Revealed Preference प्रकट अधिमान सिद्धांत के प्रतिपादक प्रोफेसर सैमुअल्सन अपने सिद्धांत को ' मांग के तार्किक सिद्धांत का तीसरा मूल' मानते हैं। प्रोफेसर सैैैैैैमुअल्सन का सिद्धांत मांग के नियम की व्यवहारात्मक दृष्टिकोण से व्याख्या करता है। इस सिद्धांत से पूर्व मार्शल द्वारा विकसित उपयोगिता विश्लेषण हिक्स- एलन का उदासीनता वक्र विश्लेषण उपभोक्ता के मांग वक्र की मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से व्याख्या करते हैं। प्रोफेसर सैम्यूलसन ने उपभोक्ता व्यवहार की दो मान्यताओं के आधार पर मांग के नियम की मूलभूत परिणाम निकालने का प्रयास किया है। यह मान्यताएं हैं: (1) अनेक उपलब्ध विकल्पों में से उपभोक्ता एक निश्चित चुनाव करता है। दूसरे शब्दों में वह अपने निश्चित अधिमान को प्रकट करता है यह मान्यता इस सिद्धांत को सबल क्रम की श्रेणी में रख देती है। (2) यदि अनेक विकल्पों में से संयोग B की तुलना एक परिस्थिति में संयोग A का चुनाव कर लिया गया है तो किसी अन्य परिस्थिति में यदि संयोग A तथा सहयोग B में पुनः...
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