व्यक्ति का प्रारब्ध

                 

कभी-कभी हम सोचते है कि इतनी मेहनत करने पर भी हमे सफलता नही मिल रही या कभी-कभी अत्यधिक कष्ट आजीवन भोगना पड़ता है।हम समझ नही पाते कि हमारे साथ ये क्या हो रहा है।दरअसल यह हमारा प्रारब्ध होता है जो हमारे सुख और दुःख का निर्धारक होता है।
             मैं श्री रामकृष्ण परमहंस जी के जीवन की एक कहानी बात रहा हूँ जो इस विषय को और अधिक स्पष्ट कर देगा।एक बार वे असाध्य रोग से पीड़ित हो गए थे और अत्यंत तकलीफ झेल रहे थे।कहा जाता है कि वे मां काली के अनन्य भक्त थे और माँ से साक्षात वार्तालाप होती थी।एक दिन परमहंस जी की पत्नी घर की सफाई कर रही थी, परमहंस जी को इतने कष्ट में देखकर उन्हें गुस्सा आ गया और दीवाल पर लगी हुई माँ काली की प्रतिमा पर झाड़ू से मार दिया।इतने में माँ काली प्रकट हुई और पूछीं,"क्यों बेटी,क्यों मार रही हो?"उनकी पत्नी ने कहा,"माँ, ये आपके इतने बड़े भक्त है और इतना कष्ट झेल रहे है,क्या तुम इनके कष्ट दूर नही कर सकती?"इतना सुनकर मैं काली ने कहा"जरूर कर सकती हूँ बेटी परन्तु ये कहे तो।"उनकी पत्नी ने कहा,"मां,वे जरूर आपसे कहेंगे।"फिर उन्होंने यह बात परमहंस जी से बताई और कहा कि वे मां से अनुरोध करें की मां उनके कष्ट को दूर कर दे।यह सुनकर परामहंस जी ने उनसे कहा,"माँ तो मेरे कष्ट को तुरंत ही दूर कर देगी लेकिन यह मेरा प्रारब्ध है और इसे मुझे भोगना ही पड़ेगा,अगर इसे इस जन्म में टाल दिया गया तो इसे अगले जन्म में भुगतना पड़ेगा।"

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