कर्नल साहब और उनके दो इंजीनियर बेटे

आज  कर्नल साहब बड़े उत्सुक दिखाई दे रहे थे। वे कई बार घर के पूजा घर में प्रार्थना करने के लिए जा चुके थे। बार बार घर से बाहर आकर रास्ते पर दूर तक दृष्टि डालते हैं। मैंने अंत में पूछ ही लिया कि कर्नल साहब क्या बात है ? आज आप बार-बार घर से बाहर आ रहे हैं और रास्ते की तरफ देख रहे हैं  मानो किसी का इंतजार कर रहे है।  उन्होंने बड़े उत्साह पूर्वक कहां की हाँ शर्मा जी आज हमारे बच्चों के कॉलेज के कैंपस में बड़ी-बड़ी कंपनियां आ रही हैं बस भगवान की यही प्रार्थना है कि मेरे बच्चों का कहीं पर कैंपस सिलेक्शन हो जाएऔर वे अपने पैरों पर खड़े हो जाएं।  कर्नल  साहब को देखकर यह लग रहा था कि वह अपने बच्चों से ज्यादा उत्साहित थे। रहते भी क्यों नहीं हर मां बाप की इच्छा होती है कि उनके बच्चे पढ़ लिख कर कहीं पर नियुक्ति पा जाएँ कर्नल साहब ने तो अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए अपने पूरे जीवन की कमाई ही लगा दी थी। अपने बच्चों के साथ समय बिताने के लिए और उनकी सही देखरेख हो सके इसके लिए उन्होंने प्रोन्नति को स्वीकार नहीं किया और रिटायरमेंट ले कर के  घर वापस आ गए ।आज तो उनकी मेहनत और तपस्या का फल मिलने वाला था ।आज कोई भी पिता इतना अधीर हो सकता था ।कुछ समय बाद दोनों बच्चे आते हैं और उनके चेहरे पर खुशी दिखाई देती है दोनों अपने माता-पिता का पैर छूकर बड़े गर्व से कहते हैं कि पिता जी हम लोगों की नौकरी लग गई हम लोगों की नौकरी 4.50 लाख के वार्षिक पैकेज पर लगी है। यह सुनकर कर्नल साहब की खुशी का ठिकाना नहीं रहा ऐसे लग रहा था मानो दुनिया की सबसे बड़ी खुशी इनको प्राप्त हुई है ।यह इतनी खुश तब भी नहीं थे जब इनकी खुद की नौकरी लगी थी और होते भी क्यों नहीं हर मां-बाप की यही इच्छा होती है कि उसके बच्चे पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ा हो जाए ।जिस तरह कर्नल साहब ने अपने बच्चों को इंजीनियरिंग की पढ़ाई कराने के लिए पैसा पानी की तरह बहाया था उसी तरह बच्चों ने भी खूब मेहनत की थी और उनकी मेहनत का ही नतीजा था  की एक बड़ी कंपनी में इंजीनियर की अच्छी जॉब मिली थी ।उनके बच्चों की नौकरी के साल दो  साल बाद उनकी शादी के रिश्ते के लिए देखने वाले भी आने लगे ।कर्नल साहब ने दहेज की परवाह न करते हुए उनके लिए सर्वश्रेष्ठ लड़की का चुनाव किया और उनकी शादी में खूब पैसा खर्च किया ।वह कहा करते थे कि पैसे बचा कर मैं करूंगा क्या मेरी जिंदगी तो मेरे यह दोनों बच्चे हैं। कर्नल साहब के घर से उनके बच्चों की कंपनी ढाई सौ किलोमीटर पर थी जब से बच्चे जॉब कर रहे थे हर रविवार को वह अपने माता-पिता से मिलने के लिए घर पर आते थे और जब कभी त्यौहार पड़ता तो दोनों बच्चे अपना समय माता पिता के साथ व्यतीत करते थे। शादी होने के बाद पत्नियों ने इच्छा जाहिर की कि वह भी अपने पतियों के साथ उनकी रूम पर ही रहेंगी।बच्चों ने यह बात बड़े संकोच के साथ  कर्नल साहब को बताया ।कर्नल साहब बड़ी खुशी खुशी राजी हो गए उन्होंने कहा कोई बात नहीं हम लोग तो अपनी देखभाल कर लेंगे तुम्हें इन लोगों की मुझसे ज्यादा आवश्यकता है। कम से कम इनके साथ रहने पर तुम घर का बना खाना तो खाओगे तुम्हें इस तरह बाहर खाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और शादी के बाद पति पत्नी का साथ होना जरूरी होता है ।अब दोनों बच्चों की पत्नियां भी उनके साथ रहने लगी लेकिन अब बच्चे धीरे-धीरे अपनी दुनिया में मस्त होने लगें ।घर पर अपने माता-पिता से मिलने का जिनका  नियमित क्रम था उसमें धीरे-धीरे कमी आने लगी पहले तो हर हफ्ते वे दोनों अपने माता-पिता से मिलने के लिए आते थे लेकिन बाद में महीने दो महीने बाद आने लगे और फिर उसके बाद साल दो साल पर आने लगे। कर्नल साहब और उनकी पत्नी को अकेलापन खाने लगा जिन बच्चों के साथ अपना समय बिताने के लिए उन्होंने कुछ समय पहले ही रिटायरमेंट ले लिया था ।अब बच्चे उनके पास नहीं है फिर भी मन में संतोष होता था चलो बच्चे अपने पैर पर खड़े हैं और अपने परिवार के साथ खुश है। 

           कुछ साल बाद दोनों बच्चों का चयन अमेरिका के किसी बड़ी कंपनी में हो जाता है। इस प्रकार दोनों बच्चे अपनी पत्नियों के साथ अमेरिका में बस जाते हैं। कुछ समय बाद कर्नल साहब के बच्चों के लड़के और लड़कियां भी हो जाते हैं ।कर्नल साहब का बहुत मन करता कि वह अपने पोते और पोतियों  साथ समय बिताएं उनके साथ खेलें,  लेकिन उनकी इच्छा मन में ही दबी रह गई। अब तो बच्चे भी बहुत दिन बाद आते थे। शुरू शुरू में अमेरिका जाने के बाद साल भर पर बच्चे समय निकाल लेते थे अपने माता-पिता से मिलने के लिए लेकिन अब तो 3 या 4 साल पर मुश्किल से समय निकाल पाते हैं आने का।  अब तो उन्हें तनहाइयां काटने को दौड़ते थे ।अब उन्हें अपने परिवार की कमी का एहसास होने लगा। जैसे जैसे व्यक्ति वृद्धावस्था की ओर जाने लगता है उसे अपने परिवार की बहुत ही जरूरत होती है।  खैर  कर्नल  साहब को पैसे की कोई कमी नहीं थी क्योंकि उन्हें पर्याप्त सरकारी पेंशन मिल रहा था। बस उन्हें जरूरत थी तो अपने परिवार के साथ समय बिताने की,एक भावनात्मक सहारे की  ।जैसे-जैसे   उम्र बढ़ने लगती है , कोई साथ दे या ना दे बीमारियां अवश्य साथ देने के लिए आती रहती हैं।कर्नल साहब की पत्नी का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था। समय-समय पर बीमार पड़ती थी ,और उन्हें डॉक्टर को दिखाना पड़ता था ।एक बार उनकी तबीयत काफी खराब हो गई और उन्हें लगने लगा कि अब वह इस दुनिया से जाने वाली है ऐसे समय में उनके मन में अपने परिवार को देखने की और उनके साथ समय बिताने की तीव्र इच्छा हुई। उन्होंने संदेश भी भिजवाया कि कुछ समय छुट्टी लेकर आ जाओ और हमारे साथ समय व्यतीत कर लो, मेरा कोई ठिकाना नहीं है कि मैं कब तक इस दुनिया में रहूंगी ।लेकिन उनके बच्चों में से कोई नहीं आया ।उन्होंने कहा मां हमें छुट्टी नहीं मिल रही है इसलिए हम आने में असमर्थ हैं। अचानक 1 दिन उनकी तबीयत ज्यादा खराब हो जाती है कर्नल साहब ने उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया।  एक हफ्ते तक उपचार होता रहा लेकिन समय के पहिए को कौन रोक सकता है ।जो आया है उसे एक दिन जाना ही पड़ेगा। कर्नल साहब की पत्नी भी अपनी आंखों में अपने बच्चों से मिलने का सपना लिए हुए इस दुनिया को छोड़ कर चली जाती है। कर्नल साहब को ऐसा लगा मानव जैसे उनकी दुनिया ही समाप्त हो गई ।उन्होंने यह संदेश अपने बच्चों को  भिजवाया। कर्नल साहब ने दाह संस्कार की सारी तैयारियां कर ली थी  केवल अब इंतजार था उनके बच्चों के आने का   ।शाम होते होते उनका छोटा बेटा  घर पर पहुंच गया। छोटे बेटे को देखकर कर्नल साहब ने पूछा, क्यों विवेक , बड़े भैया कहां रह गए, क्या किसी दूसरी गाड़ी से आ रहे हैं क्या? छोटे के मुंह से बरबस ही निकल पड़ा, पिताजी !भैया ने कहा था कि आज मां के मरने पर तुम चले जाओ अगली बार पिताजी मरेंगे तो मैं चला जाऊंगा ।इतना सुनते ही मानों कर्नल साहब के ऊपर वज्रपात हो गया। उन्हें ऐसा लगा जैसे किसी ने हजारों शस्त्रों से उनके सीने को छलनी कर दिया हो। ऐसा लगा जैसे दुनिया के  सबसे  बड़े आश्चर्य  से उनका सामना हुआ हो।वे आश्चर्य भरी  निगाहों से कुछ समय तक अपने लड़के को देखते रहे फिर उन्होंने उधर से नजर फेरते हुए अपनी पत्नी को देखा कुछ देर तक एकटक देखते रहे, फिर अचानक तेजी से पीछे मुड़े और सीधी कमरे में चले गए  उन्होंने कमरे को अंदर से बंद कर दिया लगभग 10 मिनट बाद कमरे से गोली की आवाज आई सभी लोग कमरे की तरफ भागे तो अंदर का नजारा विस्मित कर देने वाला था ।कर्नल साहब टेबल पर पड़े हुए थे। उनके सिर से खून बह रहा था ।उनके एक हाथ में पिस्टल थी और एक हाथ में कलम थी और टेबल पर खून की छींटे पड़ीं हुई एक पत्र था जिस पर लिखा था-" बेटा तुम्हारी मां को तुम लोगों से मिलने की बहुत इच्छा थी अंत समय में भी उनके होठों पर  तुम लोगों का ही नाम था। तुम लोगों से मिलने की इच्छा लिए हुए वह इस दुनिया से विदा हो गई। मुझे दुख है कि आज तुम्हें अपनी मां की मृत्यु के कारण अपना काम तथा अपना परिवार छोड़कर आना पड़ा। अपने बड़े भैया से बोल देना कि मेरी मृत्यु होने पर अब उन्हें यहां आने का कष्ट नहीं उठाना पड़ेगा मैं भी मां के पास  जा रहा हूँ।भगवान तुम्हें सुखी रखें!

Comments

Popular posts from this blog

Synthesis Of Sentences--Use Of Participle(Present,Past and Perfect Participle)

प्रकट अधिमान सिद्धांत(The Theory Of Revealed Preference)

Synthesis-Formation Of Complex Sentences(use of Noun Clause