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सीमांत उपयोगिता हास नियम(Law of Diminishing Marginal Utility)

सीमांत उपयोगिता हास नियम

Law of diminishing marginal utility

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 19वीं शताब्दी के प्रमुख अर्थशास्त्री गोसेन ने इस विचार का प्रयोग पहली बार किया था इसलिए इस नियम को गोसेन का प्रथम नियम कहा जाता है। बाद में इस नियम की वैज्ञानिक व्याख्या प्रोफेसर मार्शल ने की थी।

 परिभाषाएं-

सीमांत उपयोगिता हास नियम की प्रमुख परिभाषाएं निम्न है:

(1) मार्शल के अनुसार-" अन्य बातें समान रहने पर किसी व्यक्ति के पास किसी वस्तु की मात्रा(स्टॉक) में वृद्धि होने पर जो अतिरिक्त लाभ(संतुष्टि या उपयोगिता) प्राप्त होता है, वह वस्तु की मात्रा में प्रत्येक वृद्धि के साथ-साथ घटता जाता है।"

 मार्शल की परिभाषा से स्पष्ट है कि किसी वस्तु का उत्तरोत्तर उपभोग करते रहने से उस वस्तु की प्रत्येक अगली इकाई से मिलने वाली अतिरिक्त उपयोगिता घटने लगती है। घटती हुई अतिरिक्त उपयोगिता को ही सीमांत उपयोगिता हास नियम कहा जाता है।

(2)चैपमैन  के अनुसार-" जिस किसी भी वस्तु की जितनी ही अधिक मात्रा हमारे पास होती है, हम उस वस्तु के लिए उतने ही कम इच्छुक होते जाते हैं, अथवा हम उस वस्तु की उतनी ही कम अतिरिक्त इकाइयां चाहते हैं।"

 प्रोफेसर चैपमैन की धारणा भी प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से मार्शल की धारणा से मिलती है। दोनों अर्थशास्त्री इस बात को मानते हैं कि वस्तु की मात्रा के बढ़ने या उनका लगातार उपभोग करते रहने से उस से प्राप्त होने वाली अतिरिक्त उपयोगिता घटते हुए क्रम में प्राप्त होती है।

(3) प्रोफ़ेसर बोल्डिंग के अनुसार-" जब कभी कोई उपभोक्ता अन्य वस्तुओं के उपभोग को स्थिर रखते हुए किसी एक वस्तु के उपभोग को बढ़ाता है, तो उस बढ़ाई गई वस्तु की सीमांत उपयोगिता अंत में अवश्य घटती है"।

प्रोफेसर बोल्डिंग की धारणा एक नई बात बताती है, जो अन्य अर्थशास्त्रियों की परिभाषा में नहीं है। पहले पहल एक या दो इकाइयों की उपभोग से सीमांत उपयोगिता बढ़ेगी और उसके तुरंत बाद उस में गिरावट आने लगेगी। यह विचारधारा वर्तमान समय के अर्थशास्त्रियों की देन कही जाती है।

उपर्युक्त परिभाषाओं के अध्ययन से स्पष्ट है कि उपभोक्ता ज्यों-ज्यों  वस्तु का उपभोग करता त्यों-त्यों उपभोग की जाने वाली वस्तुओं के संबंध में उसकी सीमांत उपयोगिता घटती है और एक बिंदु के बाद तो कुल उपयोगिता में भी कमी आने लगती है।

 सीमांत उपयोगिता हास नियम की

व्याख्या- सीमांत उपयोगिता हास नियम को हम एक काल्पनिक तालिका की सहायता से स्पष्ट कर सकते हैं:

उपर्युक्त तालिका दो को देखकर हम यह कह सकते हैं कि दो रोटियों के उपभोग करने तक उपभोक्ता की सीमांत उपयोगिता में  वृद्धि हो रही है, अर्थात पहली रोटी की अपेक्षा दूसरी रोटी से मिलने वाली उपयोगिता अधिक है।' एक सीमा के बाद 'जैसा कि बोल्डिंग ने कहा है , रोटी की दूसरी इकाई के तुरंत बाद जब रोटी की तीसरी  इकाई का उपभोग किया जाता है तब सीमांत उपयोगिता 25 से घटकर 15 और चौथी, पांचवी तथा छठी इकाई केेे उपभोग से सीमांत उपयोगिता घटकर  क्रमशः 10, 5 और शून्य तक पहुंच जाती है। उपभोक्ता को रोटी की छठी इकाई से पूर्ण संतुष्टि प्राप्त्त हो जााती है। इस बिंदु को  तृप्तिपूर्ण का बिंदु भी कहते है। इसी बिंदु पर रोटियों से प्राप्त होने वाली कुल उपयोगिता भी अधिकतम होती है। इस बिंदु के बाद जब उपभोक्ता  रोटी की सातवीं और आठवीं इकाई का उपभोग करता हैै तो उपभोक्ता को ऋणआत्मक उपयोगिता प्राप्त होने लगती है। इस स्थिति को तालिका दो में -5 व -10 से अंकित किया गया है । सामान्यतया हम कह सकते हैं कि एक विवेकशील उपभोक्ता रोटी  की सातवीं और आठवीं इकाई का उपभोग नहींं करेगा।
संक्षेप में, हम तालिका से तीन महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाल सकते हैं:
(1) धनात्मक सीमांत उपयोगिता (पांचवी रोटी तक) कुल उपयोगिता में वृद्धि करती है।
(2) शून्य सीमांत उपयोगिता (छठी रोटी पर) कुल उपयोगिता अधिकतम होती है।
(3) शून्य सीमांत उपयोगिता के बाद रोटी की सातवीं और आठवीं इकाई पर सीमांत उपयोगिता ऋणआत्मक हो जाती है।

उपर्युक्त निष्कर्ष से यही स्पष्ट है कि सीमांत उपयोगिता और कुल उपयोगिता के बीच घनिष्ठ से संबंध है।
 रेखा चित्र की सहायता से स्पष्टीकरण-
 तालिका संख्या 1 के आंकड़ों के आधार पर हम एक साथ कुल उपयोगिता तथा सीमांत वक्रों की सहायता से उपयोगिता हास नियम की व्याख्या कर सकते हैं।


चित्र संख्या 4 से स्पष्ट है कि रोटियों का 
उत्तरोत्तर उपभोग करने से प्रारंभ में A बिंदु तक सीमांत उपयोगिता बढ़ती है, इसके बाद गिरने लगती है। चित्र के अनुसार A बिंदु के बाद MU रेखा उत्तरोत्तर गिरती जाती है। रोटी की छठी इकाई का उपभोग करने पर सीमांत उपयोगिता शून्य हो जाती है। चित्र में इस बिंदु को E से दिखाया गया है। E बिंदु पर उपभोक्ता को पूर्ण संतुष्टि मिलती है। चित्र में इस बिंदु को पूर्ण तृप्ति क बिंदु कहा गया है।
बिंदु E के बाद MU रेखा OX-axis के नीचे चली जाती है, इससे स्पष्ट है कि E बिंदु के बाद,उपभोक्ता ज्यों-ज्यों रोटी की अतिरिक्त इकाइयों का उपयोग करता है, रोटी की प्रत्येक अगली कैसे सीमांत उपयोगिता घटती है, जो ऋणआत्मक सीमांत उपयोगिता है। चित्र में EC रेखा ऋणआत्मक स्थिति को व्यक्त करती है।
सीमांत उपयोगिता हास नियम की मान्यताएं-सीमांत उपयोगिता हास नियम की प्रमुख मान्यताएं निम्नलिखित है :
(1) इकाइयों के गुण व रूप में समरूप होना-यह नियम  तभी क्रियाशील होगा जब उपभोग की जाने वाली वस्तुएं गुण और रूप में समरूप हो। वस्तुओं के गुणों का अंतर नियम को लागू नहीं होने देगा।
(2) वस्तु की इकाइयों का आकार उपयुक्त होना-उपभोक्ता के द्वारा जिन वस्तुओं का उपभोग किया जाता है वे वस्तुएं  उसके संदर्भ में प्रमाणिक होनी चाहिए।प्रामाणिकता का अभिप्राय यह है कि वस्तुओं की इकाइयां उपभोक्ता के आकार-प्रकार के अनुरूप होनी चाहिए।यदि उपभोग की जाने वाली वस्तुओं की इकाइयां उपभोक्ता के लिए उपयुक्त नहीं है, तो यह नियम क्रियाशील नहीं होगा।
(3) वस्तु का उपभोग निरंतर होना चाहिए-उपभोक्ता जिन वस्तुओं का उपभोग कर रहा है, उसके उपभोग का क्रम तब तक नहीं टूटना चाहिए, जब तक कि उसे संतुष्टि नहीं मिलती है।यदि उपभोग का क्रम बीच-बीच में टूटता है या समयांतर हुआ तो नियम लागू नहीं होगा।
(4) उपभोक्ता की मानसिक दशा में परिवर्तन नहीं होना चाहिए-उपयोगिता हास नियम की चौथी मान्यता यह है कि उपभोग करते समय उपभोक्ता की मानसिक स्थिति में परिवर्तन नहीं आना चाहिए। उदाहरण के लिए उपभोग करते समय उपभोक्ता चिंतामग्न है जिसके कारण उसके लिए रोटी की उपयोगिता सुनी होगी। चिंता के समाप्त होते ही उसके लिए रोटी की उपयोगिता बढ़ जाएगी। यही बात मादक व नशीली वस्तुओं के लिए लागू होती है। ऐसी दशा में उपयोगिता हास नियम काम नहीं करेगा, क्योंकि उपभोक्ता की मानसिक दशा  असंतुलित हो चुकी है।
(5) वस्तु की कीमत में परिवर्तन ना होना-उपभोक्ता जिस समय किसी वस्तु का उपभोग करता है, उस वस्तु अथवा उसकी स्थानापन्न वस्तु की कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
(6) उपभोक्ता की आय, फैशन, रुचि व स्वभाव का यथास्थिर रहना-कुछ वस्तुएं ऐसी हैं जिनका उपभोग लंबे समय तक किया जाता है। इस बीच उपभोक्ता की आय, फैशन ,स्वभाव, रुचि आदि में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं आना चाहिए। यदि इन बातों में परिवर्तन आ गया, तो उपयोगिता हास नियम लागू नहीं होगा।
(7) उपयोगिता हास नियम केवल सुखमय आर्थिक दशाओं में ही लागू होता है-सीमांत उपयोगिता हास नियम सुखमय अवस्था में ही लागू होता है, दुखमय अवस्था में नहीं। उदाहरण के लिए,खून की कमी से बेहोश पड़े व्यक्ति को खून की प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय इकाई से अधिक उपयोगिता मिलेगी, पर जब वह सामान स्थिति में आएगा तभी सीमांत उपयोगिता में कमी आएगी।
सीमांत उपयोगिता हास नियम के अपवाद
सीमांत उपयोगिता हास नियम के बारे में कुछ अर्थशास्त्रियों की धारणा है कि यह नियम सार्वभौमिक नहीं है।
(1) उपभोग की जाने वाली वस्तु की इकाइयां बहुत छोटी-छोटी हो तो-प्रोफेसर चैपमैन ने इस अपवाद के संबंध में चाय बनाने के लिए कोयले का उदाहरण दिया है।यदि चाय बनाने वाले व्यक्ति को कोयले का एक-एक टुकड़ा दिया जाता है तो उसके लिए प्रत्येक अगले टुकड़े की उपयोगिता बढ़ती जाएगी। इस संदर्भ में प्रोफेसर  चैपमैन का कहना है कि "हर अगली इकाई से मिलने वाला तुष्टि गुण बढ़ता जाएगा जब तक कि कोयले की मात्रा पर्याप्त नहीं हो जाती और इसके बाद तुष्टिगुण घटने लेगेगा।"चैपमैन जिस अपवाद की व्याख्या की है वह वास्तव में अपवाद नहीं है, क्योंकि हमने नियम की मान्यता में वस्तु की प्रमाणित इकाई की बात कही है, अतः यह अपवाद गलत है।
(2) शराबी व्यक्ति-एक शराबी जब शराब की उत्तरोत्तर इकाइयों का उपभोग करता है, तो वह अत्यंत आनंद का अनुभव करता है।शराबी को प्रथम प्याले की अपेक्षा दूसरे, तीसरे और चौथे प्याले से अधिक उपयोगिता मिलती है, अतः ऐसी स्थिति में सीमांत उपयोगिता हास नियम लागू नहीं होता है। सीमांत उपयोगिता हास नियम का यह अपवाद सही नहीं है, क्योंकि नियम की क्रियाशीलता के लिए उपभोक्ता की मनोदशा को सामान्य मान लिया था, जबकि यहां शराब पीने के साथ-साथ उपभोक्ता की मनोदशा असामान्य हो जाती है।
(3) दुर्लभ तथा विचित्र वस्तुएं-सिक्के व टिकटों का संग्रह करने वाला व्यक्ति ज्यों-ज्यों नए सिक्कों व टिकटों को प्राप्त करता जाता है, त्यों-त्यों प्रत्येक अगले सिक्के व टिकट से मिलने वाली उपयोगिता उसके लिए बढ़ जाती है।पुराने सिक्कों व पुराने टिकटों का संग्रह उसके संग्रहालय को और अधिक उपयोगी बना देता है।
यह अपराध भी सही नहीं है, क्योंकि इसके संग्रह में समयांतर है।इसके अतिरिक्त जिन सिक्कों व टिकटों का संग्रह किया जाता है वह समरूप भी नहीं है जबकि नियम की मान्यता में समयांतर व समान आकार की वस्तु को माना गया है।
(4) धन संचय की प्रवृत्ति, शान-शौकत, दिखावा- लगातार संचय करते रहने से धन की उपयोगिता घटती नहीं है। इसी प्रकार शान-शौकत व दिखाने के लिए किए जाने वाले प्रयत्नों से भी उपयोगिता घटती नहीं है, बल्कि बढ़ती जाती है। इन अपवादों के संबंध में भी यही कहा जाता है कि यह अपवाद नियम के वास्तविक अपवाद नहीं है, क्योंकि अर्थशास्त्र में एक वास्तविक व्यक्ति का अध्ययन किया जाता है, जबकि रात दिन धन संग्रह, शान-शौकत व दिखावे के प्रयत्नों में लगे हुए मशीनी व्यक्ति के संदर्भ में अपवाद लागू  होगा।
(5) सुरीले गीत, सुंदर कविता तथा अच्छा साहित्य- इन सब बातों में उपयोगिता हास नियम लागू नहीं होता है। यदि ऐसा होता तो कवि सम्मेलन में पुनः पुनः की ध्वनि क्यों गूंजती ? किसी सुरीले गीत को बार-बार सुनने के लिए हम उसके टेप को बार-बार क्यों सुनते हैं? देखा जाए तो यह अपवाद भी सही नहीं है, क्योंकि एक सीमा के बाद कविता एवं सुरीला गीत भी बार बार सुनने के बाद अरुचिकर लगने लगता है।
(6) वस्तु के उपभोक्ताओं की संख्या में वृद्धि- टेलीफोन के कनेक्शनों के संबंध में यह बात कही जा सकती है। माना, किसी शहर में टेलीफोन के कनेक्शनों की संख्या लगातार बढ़ती है, तो उतने ही अधिक लोग टेलीफोन का उपयोग करने लगेंगे। एक व्यक्ति के द्वारा एक से अधिक टेलीफोन कनेक्शन लिए जाएंगे। अतः लोगों में टेलीफोन के प्रति अधिकाधिक रुचि उत्पन्न होगी और भी टेलीफोन से अधिक वार्ता करना चाहेंगे, परंतु यह अपवाद भी नाम मात्र का अपवाद है। किसी शहर में पूरे टेलीफोन कनेक्शन पर विचार करना उचित नहीं है।
यदि एक व्यक्ति के पास एक से अधिक टेलीफोन है तो उस व्यक्ति के लिए नए टेलीफोन की उपयोगिता पहले की अपेक्षा अवश्य कम होगी।
 नियम के लागू होने के कारण
 प्रोफ़ेसर बोल्डिंग ने सीमांत उपयोगिता हास नियम के लागू होने के लिए निम्न कारण बताए हैं:
1- पूर्ण स्थानापन्न वस्तु का अभाव- वस्तुएं एक दूसरे की पूर्ण स्थानापन्न नहीं होती है, क्योंकि वस्तुओं का उपभोग एक दूसरे के रूप में एक निश्चित मात्रा तक ही किया जा सकता है। उदाहरण के लिए रोटी की एक निश्चित मात्रा के साथ, मक्खन की एक निश्चित मात्रा का उपयोग, एक आदर्श उपयोग होगा, यदि रोटी की मात्रा को स्थिर रखकर मक्खन की मात्रा को बढ़ाते जाएं तो मक्खन की इकाइयों से घटती हुई सीमांत उपयोगिता प्राप्त होगी।
2- किसी समय विशेष पर किसी एक ही आवश्यकता की पूर्ति की जा सकती है-समय और साधन की कमी के कारण एक समय में एक साथ सभी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं की जा सकती है। उपभोग करते-करते उपभोक्ता एक ऐसे बिंदु पर पहुंच जाता है जहां पर उपभोग की जाने वाली वस्तु की सीमांत उपयोगिता घटकर शून्य हो जाती है। इस बिंदु पर उपभोक्ता को पूर्ण संतुष्टि मिलती है और कुल उपयोगिता भी अधिकतम होती है। इस प्रकार अधिकतम इकाइयों के उपभोग से संतुष्टि बढ़ने की अपेक्षा घटती है।
3- वैकल्पिक प्रयोग-प्रत्येक वस्तु के अनेक उपयोग होते हैं। कुछ प्रयोग बहुत अधिक महत्वपूर्ण होते हैं तथा कुछ कम महत्वपूर्ण होते हैं।जैसे जैसे किसी वस्तु विशेष के स्टॉक में वृद्धि होती जाती है उस वस्तु का उपभग कम महत्व वाली जगह किया जाने लगता है।

सीमांत उपयोगिता हास नियम का महत्व
सीमांत उपयोगिता हास नियम के महत्व को निम्न दो शीर्षकों से स्पष्ट किया जा सकता है:
(अ) नियम का सैद्धांतिक महत्व-नियम का सैद्धांतिक महत्व निम्न है-
1-उपभोक्ता की बचत में महत्व-उपयोगिता हास नियम का महत्व उपभोक्ता की बचत की धारणा के लिए है।कोई भी उपभोक्ता किसी वस्तु की इकाई को उस बिंदु तक करें करता है, जहां पर उस वस्तु की सीमांत इकाई की उपयोगिता उसके मूल्य के बराबर होती है। इस सीमांत इकाई के पहले वाली इकाइयों से उपभोक्ता को अधिक उपयोगिता मिलती, जबकि उसने सभी इकाईयों के लिए समान मूल्य दिया है। यही अतिरिक्त उपयोगिता उपभोक्ता की बचत है।
2- कीमत सिद्धांत में महत्व- सीमांत उपयोगिता हास नियम मूल्य सिद्धांत के लिए आधारशिला का कार्य करता है, क्योंकि  यह नियम स्पष्ट करता है कि वस्तु की पूर्ति में वृद्धि होने पर कीमत में क्यों कमी आती है।
3- मांग के नियम का आधार- सीमांत उपयोगिता हास नियम मांग के नियम का आधार है। यह नियम यह बताता है कि मांग वक्र क्यों दाएं और को झुका हुआ होता है।ज्यो-ज्यो उपभोक्ता किसी वस्तु का उपभोग करता है त्यों-त्यों उसे उस वस्तु से मिलने वाली अतिरिक्त उपयोगिता घटते हुए क्रम में मिलती है। इसीलिए उपभोक्ता पहले वस्तु की अपेक्षा दूसरी वस्तु की कम कीमत देता है।यही बात मांग का नियम ही बताता है।
(ब) नियम का व्यावहारिक महत्व- व्यावहारिक दृष्टिकोण से सीमांत उपयोगिता हास नियम का निम्नलिखित महत्व है।
1-कर प्रणाली का आधार - सीमांत उपयोगिता हास नियम का महत्व राजस्व में भी है। यह नियम बताता है कि वस्तु की मात्रा में वृद्धि के साथ-साथ उसकी उपयोगिता में कमी होती है। यही बात मुद्रा के संबंध में भी लागू होती है। मुद्रा की उपयोगिता एक धनी व्यक्ति की अपेक्षा निर्धन व्यक्ति के लिए अधिक होती है। सरकार इस आधार पर धनी व्यक्ति पर प्रगतिशील दर पर कर लगाती है। धन की न्यायोचित वितरण के लिए इस नियम की सहायता ली जा सकती है।
2-नए उत्पादन को प्रोत्साहित करना- सीमांत उपयोगिता हास नियम का महत्व केवल उपभोग तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका महत्व उत्पादन के क्षेत्र में भी है। यदि उपभोक्ता लगातार किसी वस्तु का उपयोग करता रहे तो उसके लिए उस वस्तु की उपयोगिता घटेगी। अब उपभोक्ता की रूचि नई वस्तु के प्रति बढ़ने लगती है। उपभोक्ता की इस रुचि को देखकर उत्पादक अपने उत्पादन के साधनों को नई वस्तु के उत्पादन में लगाएंगे, जिससे नई वस्तुओं का उत्पादन होगा।
3- सम सीमांत उपयोगिता नियम का आधार- प्रत्येक उपभोक्ता अपने सीमित साधनों से अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करना चाहता है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सम- सीमांत उपयोगिता नियम की सहायता ली जाती है। सम-सीमांत उपयोगिता नियम की प्रमुख मान्यता सीमांत उपयोगिता हास नियम है। अधिकतम संतुष्टि के लिए उपभोक्ता अपनी मुद्रा की प्रथम इकाई उस आवश्यकता पर खर्च करता है जिससे उसे अधिक उपयोगिता मिलती है। इस प्रकार के खर्च से उपभोक्ता को अधिकतम संतुष्टि प्राप्त होती है और उसकी कुल उपयोगिता भी बढ़ती है। इन तथ्यों की अध्ययन सेेेे स्पष्ट है कि यह नियम सम सीमांंत उपयोगिता नियम का आधार है।
4- विनिमय मूल्य व प्रयोग मूल्य के अंतर को स्पष्ट करना- सीमांत उपयोगिता हास नियम विनिमय मूल्य तथा प्रयोग मूल्य के अंतर को भी स्पष्ट करता है। जिन वस्तुओं की पूर्ति पर्याप्त मात्रा में होती है उनकी सीमांत उपयोगिता उतनी ही कम होती है। इसलिए ऐसी वस्तुओं का विनिमय मूल्य कम अथवा शून्य होता है।
 उदाहरण के लिए पानी, हवा व सूर्य की रोशनी आदि यद्यपि इन वस्तुओं का प्रयोग मूल्य अर्थात कुल उपयोगिता सर्वाधिक होती है।


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