उपयोगिता के भेद( सीमांत उपयोगिता, कुल उपयोगिता)

उपयोगिता के भेद

         Kinds of Utility

उपयोगिता को दो भागों में बांटा जा सकता है:

1-सीमांत उपयोगिता

2-कुल उपयोगिता

(1) सीमांत उपयोगिता (Marginal Utility)-

सीमांत उपयोगिता का अर्थ-जब उपभोक्ता किसी वस्तु की अनेक इकाइयों का उपभोग करता है तो उपभोग की जाने वाली अंतिम इकाई को 'सीमांत इकाई'तथा उससे प्राप्त होने वाली उपयोगिता को सीमांत उपयोगिता कहा जाता है।उदाहरण के लिए नारंगी की एक इकाई की उपयोगिता 40 है।यदि दूसरी इकाई के उपभोग से उपभोक्ता को कुल 60 उपयोगिता प्राप्त होती है तो ऐसी दशा में नारंगी की अतिरिक्त इकाई की सीमांत उपयोगिता 60-40=20 होगी। सीमांत उपयोगिता से मार्शल का अभिप्राय किसी समय विशेष पर उपभोग की जाने वाली वस्तु की अंतिम इकाई से प्राप्त होने वाली उपयोगिता से है। 

सीमांत उपयोगिता के रुप-सीमांत उपयोगिता की धारणा को तालिका संख्या 1 से स्पष्ट किया गया है

सीमांत उपयोगिता केे तीन रूप-तालिका से यह स्पष्ट होता हैै कि सीमांत उपयोगिता केेेे तीन रूप होते हैं:
1-धनात्मक सीमांत उपयोगिता-जब किसी वस्तु की उत्तरोत्तर इकाइयों के उपभोग से मिलने वाली सीमांत उपयोगिता (MU)  के योग से कुल उपयोगिता(TU) बढ़ती है, तब तक वस्तु की सीमांत उपयोगिता धनात्मक होती है। तालिका के अनुसार रोटी की पांचवी ईकाई तक सीमांत उपयोगिता धनात्मक है।
2-शून्य सीमांत उपयोगिता-तालिका के अनुसार जब रोटी की सातवीं इकाई का उपभोग किया जाता है, तब उसकी उपयोगिता ऋण आत्मक हो जाती है। छठी इकाई पर उपभोक्ता की सीमांत उपयोगिता शून्य व कुल उपयोगिता 75 है। सातवीं इकाई पर उसकी सीमांत उपयोगिता -5 है और कुल उपयोगिता घटकर 70 रह जाती है। आठवीं इकाई के उपभोग से सीमांत उपयोगिता घटकर-10 और कुल उपयोगिता 60 रह जाती है। रोटी की सातवीं तथा आठवीं इकाई के उपभोग से उपभोक्ता को तुष्टिहीनता या असंतोष का अनुभव होता है। अर्थशास्त्र में इस स्थिति को" ऋण आत्मक उपयोगिता "कहा जाता है। 
3-ऋणात्मक सीमांत उपयोगिता-जब सीमांत उपयोगिता के शून्य हो जाने पर(पूर्ण तृप्ति का बिंदु)भी उपभोक्ता वस्तु का उपभोग जारी रखता है तो उसे वस्तु के उपभोग से प्राप्त होने वाली उपयोगिता ऋणात्मक हो जाती है अर्थात उसे उपयोगिता के स्थान पर अनुपयोगिता प्राप्त होने लगती है।
चित्र द्वारा सीमांत उपयोगिता की व्याख्या

चित्र 1 से सीमांत उपयोगिता की प्रवृत्ति को स्पष्ट किया जा सकता है।
      चित्र से ज्ञात होता है कि रोटी के उपभोग से सीमांत उपयोगिता घट रही है। एक सीमा तक यह धनात्मक है। इसे चित्र में AB रेखा से दिखाया गया है। जब रोटी की छठ इकाई का उपभोग किया जाता है तब उपभोक्ता को पूर्ण संतुष्टि मिलती है। इस स्थिति को चित्र में B बिंदु से दिखाया गया है। रोटी की अंतिम सातवीं और आठवीं इकाई के उपभोग से उपभोक्ता को क्रमशः ऋण आत्मक सीमांत उपयोगिता प्राप्त होती है। जिसे चित्र में BC रेखा से दिखाया गया है।
2-कुल उपयोगिता-जब हम किसी वस्तु की एक से एक से अधिक इकाइयों का उपभोग करते हैं, तब प्रत्येक इकाई से प्राप्त होने वाली सीमांत उपयोगिता का योग कुल उपयोगिता से होता है। दूसरे शब्दों में कुल उपयोगिता विभिन्न इकाइयों की सीमांत उपयोगिता का योग है।
    कुल उपयोगिता संबंधी विचार को हम अपनी पूर्व तालिका 1 में रोटियों के उदाहरण से स्पष्ट कर सकते हैं:
1-जैसे-जैसे रोटियों की उत्तरोत्तर इकाइयों का उपभोग बढ़ाया जाता है, रोटियों से मिलने वाली कुल उपयोगिता घटती हुई दर से बढ़ती है।
2-जब तक उपभोक्ता पांचवी रोटी का उपभोग करता है तब तक उसकी कुल उपयोगिता बढ़ती है। छठी रोटी की कुल उपयोगिता पांचवी रोटी की कुल उपयोगिता के बराबर है। स्पष्ट है कि अब कुल उपयोगिता का बढ़ना समाप्त हो गया है। इस बिंदु पर कुल उपयोगिता अधिकतम होती है इसलिए यह बिंदु पूर्ण संतुष्टि का बिंदु कहा जाता है।
3-जब उपभोक्ता के द्वारा रोटी की सातवीं और आठवीं इकाई का उपभोग किया जाता है तो अतिरिक्त रोटियों से ऋण आत्मक उपयोगिता मिलने लगती है। परिणाम स्वरूप कुल उपयोगिता घटती है।
चित्र द्वारा स्पष्टीकरण-


कुल उपयोगिता के विश्लेषण को चित्र संख्या दो से स्पष्ट किया गया है। चित्र में कुल उपयोगिता को TU रेखा से दिखाया गया है। रोटी की छठी इकाई से मिलने वाली उपयोगिता को M बिंदु से दिखाया गया है।इस बिंदु पर उपभोक्ता को सर्वाधिक कुल उपयोगिता प्राप्त होती है। इसके बाद कुल उपयोगिता घटने लगती है।



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