कुल उपयोगिता एवं सीमांत उपयोगिता

  कुल उपयोगिता एवं सीमांत उपयोगिता

Total utility and marginal utility

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वस्तु की सभी इकाइयों के उपभोग से जो उपयोगिता प्राप्त होती है उसे कुल उपयोगिता कहते हैं। उदाहरणस्वरूप, यदि उपभोक्ता वस्तु की m इकाइयों का उपभोग करता है तो m+1 इकाइयों से प्राप्त कुल उपयोगिता का अंतर होती है। इस प्रकार सीमांत उपयोगिता वस्तु की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई से प्राप्त उपयोगिता है। दूसरे शब्दों में, सीमांत उपयोगिता वस्तु की किसी भी निश्चित राशि के उस अंतर के बराबर होती है जिसका प्रभाव वस्तु की एक इकाई को उपभोग से हटा लेने पर उसकी कुल उपयोगिता पर पड़ता है, अतः MUx=TUx-TUx-1 सीमांत उपयोगिता को निम्नलिखित गणितीय सूत्र में व्यक्त किया जा सकता है

MU x=dUx|dQx

जहाँ MUx= वस्तु x की सीमांत उपयोगिता

dUx= वस्तु x की कुल उपयोगिता में परिवर्तन

dQx=  वस्तु x की कुल मात्रा में परिवर्तन

कुल उपयोगिता तथा सीमांत उपयोगिता के बीच संबंध

1- जब कुल उपयोगिता घटती हुई दर से बढ़ रही होती है तो सीमांत उपयोगिता घट रही होती है लेकिन धनात्मक होती है।

2- जब कुल उपयोगिता अधिकतम होती है तो सीमांत उपयोगिता शून्य होती है।

3- जब कुल उपयोगिता घटने लगती है तो सीमांत उपयोगिता ऋणात्मक हो जाती है।

 इस प्रकार सीमांत उपयोगिता कुल उपयोगिता में परिवर्तन की वह दर है जो किसी वस्तु की मात्रा में एक निश्चित अल्प परिवर्तन के कारण होती है। इस प्रकार यदि प्रत्येक इकाई की सीमांत उपयोगिता को जोड़ दिया जाए तो कुल उपयोगिता प्राप्त हो जाती है।अतः 

TUx=MUx1+MUx2.........MUxn

 कुल उपयोगिता तथा सीमांत उपयोगिता के बीच संबंध नीचे दी गई तालिका से समझा जा सकता है


 उपरोक्त तालिका से स्पष्ट है कि वस्तु की चौथी  इकाई तक कुल उपयोगिता बढ़ती है, परंतु सीमांत उपयोगिता घटती जाती है। यह स्थिति पांचवीं इकाई पर जब कुल उपयोगिता अधिकतम होती है, तो सीमांत उपयोगिता शून्य होती है यही उपभोक्ता के लिए संतुष्टि का बिंदु होती है। इसके बाद के उपभोग अर्थात छठी स्थिति में जब कुल उपयोगिता घट रही होती है, तो सीमांत उपयोगिता ऋण आत्मक हो जाती है। यह उपभोक्ता की अनुपयोगिता की स्थिति है।

निम्नलिखित चित्र के माध्यम से इसे स्पष्ट किया जा सकता है



उपरोक्तत चित्र में OM वस्तु की इकाइयों का उपभोग होने पर सीमांत उपयोगिता शून्य हो जाती है। ऐसी स्थिति में कुल उपयोगिता A बिंदु पर अधिकतम होती है। इसकेेेेे बाद उपभोग बढ़ने पर MU ऋण आत्मक हो जाती है और उपभोक्ता को अनूपयोगिता प्राप्त होने लगती है। इसी प्रवृत्ति के आधार पर सीमांत उपयोगिता हास नियम का प्रतिपादन हुआ।

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