सम सीमांत उपयोगिता नियम अथवा प्रतिस्थापन का नियम
इस नियम को गोसेन का दूसरा नियम भी कहा जाता है क्योंकि गोसेन ने सबसे पहले उपयोगिता हास नियम और बाद में सम सीमांत उपयोगिता नियम की रचना की थी।
सम सीमांत उपयोगिता नियम की परिभाषा- सम सीमांत उपयोगिता नियम की प्रमुख परिभाषा नीचे दी गई है:
मार्शल के अनुसार-" यदि किसी व्यक्ति के पास कोई एक ऐसी वस्तु हो जो विभिन्न प्रयोगों में लाई जा सके तो वह उस वस्तु को विभिन्न प्रयोगों में इस प्रकार बांटेगा कि उसकी सीमांत उपयोगिता सभी प्रयोगों में समान रहे,क्योंकि यदि वस्तु की सीमांत उपयोगिता एक प्रयोग में दूसरे की अपेक्षा अधिक है तो वह दूसरे प्रयोग से वस्तु की मात्रा हटााकर तथा उसका प्रयोग पहले में करके लाभ प्राप्त कर सकता है।
मार्शल ने सम- सीमांत उपयोगिता नियम के संबंध में व्यापक विचार प्रस्तुत किए हैं। उन्होंने अपनी परिभाषा में मुद्रा के स्थान पर वस्तु को माध्यम माना है।यदि हम उनकी परिभाषा में वस्तु के स्थान पर मुद्रा को सम्मिलित कर देते हैं, तो भी परिभाषा तथा नियम की प्रकृति में अंतर नहीं आएगा अर्थात वस्तु के ही समान मुद्रा को भी एक से अधिक वैकल्पिक प्रयोग किए जा सकते हैं।
सम सीमांत उपयोगिता नियम की मान्यताएं-अर्थशास्त्र के अन्य नियमों की तरह से इस नियम की भी कुछ मान्यताएं हैं। यह नियम कुछ मान्यताओं के ऊपर आधारित है। मुख्य मान्यताएं निम्न प्रकार है:
1-उपभोक्ता का विवेकशील होना-सम सीमांत उपयोगिता नियम इस मान्यता पर आधारित है कि उपभोक्ता विवेकशील प्राणी है अर्थात प्रत्येक उपभोक्ता अपनी आय को सोच समझकर ब्यय करता है।
2-उपभोक्ता की रूचि फैशन में परिवर्तन ना होना-उपभोक्ताता के व्यवहार, रुचि, फैशन आदि में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होना चाहिए , यदि ऐसा होता है तो यह नियम लागू नहीं होगा।
3-मुद्रा की सीमांत उपयोगिता का स्थिर होना-मुद्रा की सीमांंत उपयोगिता को समान मान लिया गया है। संक्षेप मेंं मुद्रा की मात्रा के कम अथवा ज्यादा होने पर भी उसकी सीमांत उपयोगिता यथास्थिर रहेगी।
4- उपयोगिता को मुद्रा रुपी पैमाने से मापा जा सकता है-
ब्याख्या-
हम यहां सम सीमांत उपयोगिता नियम की व्याख्या को एक काल्पनिक तालिका तथा रेखा चित्रों की सहायता से स्पष्ट कर सकते हैं। उदाहरण के अनुसार, एक उपभोक्ता के पास ₹10 है, इस समय उसे 2 वस्तुओं की आवश्यकता है। यह दो वस्तुएं गेहूं तथा चावल है। हम यहां यह मान लेते हैं कि गेहूं तथा चावल ₹1 प्रति किलो है। इस प्रकार उपभोक्ता अपने ₹10 से गेहूं तथा चावल की 10 इकाइयों को क्रय कर पायेगा। गेहूं तथा चावल के उपभोग करने से उपभोक्ता को जो उपयोगिता प्राप्त हो रही हैं उन्हें तालिका संख्या तीन में दिखाया गया है।
तालिका 3
तालिका से स्पष्ट है कि उपभोक्ता पहले और दूसरे रुपए को गेहूं पर, तीसरा रुपया चावल पर ब्यय करेगा, क्योंकि अब उसे गेहूं की तुलना में चावल से अधिक उपयोगिता मिल रही है। अब वह चौथे रुपए को गेहूं पर, पांचवा रुपया चावल पर, छठा और सातवां रुपया गेहूं पर खर्च करेगा, शेष ₹2 को चावल और गेहूं पर ब्यय कर दिया जाएगा।
चित्र संख्या 5 में OX-axis पर मुद्रा की इकाइयां तथा OY-axis पर उपभोग से मिलने वाली सीमांत उपयोगिता को दिखाया गया है। चित्र में(W) और(R) दो रेखाएं क्रमश: गेहूं और चावल से प्राप्त होने वाली सीमांत उपयोगिताओं को व्यक्त करती है।QQ1 रेखा गेहूं और चावल दोनों के उपभोग से प्राप्त होने वाले सीमांत दृष्टिकोण को प्रदर्शित करती है। चित्र में गेहूं के उपभोग से प्राप्त होने वाली सीमांत उपयोगिता HE, तथा चावल के उपभोग से प्राप्त होने वाली सीमांत उपयोगिता CB के बराबर है, इसलिए जब उपभोक्ता अपने ₹10 में से ₹6 गेहूं पर और ₹4 चावल पर ब्यय करता है, तब उसे अधिकतम संतुष्टि प्राप्त होती है। अब मान लीजिए उपभोक्ता अपने ब्यय के क्रम में कुछ परिवर्तन करता है। परिवर्तन करने पर उपभोक्ता चावल पर केवल ₹3 और गेहूं पर ₹7 व्यय कर दें, तो ऐसी दशा में गेहूं के उपभोग से मिलने वाली सीमांत उपयोगिता EFGH है, जबकि,चावल से होने वाली उपयोगिता की हानि ABCD है। चित्र संख्या 5 में इस स्थिति को आच्छादित दंडो द्वारा प्रदर्शित किया गया है।
सम सीमांत उपयोगिता नियम का महत्व
सम सीमांत उपयोगिता नियम के महत्व का विचार मार्शल के इस कथन से स्पष्ट है कि "प्रतिस्थापन का सिद्धांत आर्थिक खोज के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में लागू होता है" नीचे नियम के महत्व को स्पष्ट किया गया है:
उपभोग के क्षेत्र में महत्व- सम सीमांत उपयोगिता नियम यह बताता है कि उपभोक्ता अपने सीमित साधनों से किस प्रकार अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करता है। नियम में हम यह स्पष्ट कर चुके हैं कि उपभोक्ता को तभी अधिकतम संतुष्टि प्राप्त हो सकती है, जब वह अपने द्रव्य की इकाई विभिन्न वस्तुओं में इस प्रकार खर्च करें की अंत में प्रत्येक वस्तु से मिलने वाली सीमांत उपयोगिता लगभग समान रहे। यदि मुद्रा के इस क्रम को बदला जाता है तो उपयोगिता में कमी आ जाएगी।
उत्पादन में महत्व- एक उत्पादक हमेशा सीमित साधनों से अधिक उत्पादन करके अधिकतम लाभ प्राप्त करना चाहता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए और प्रतिस्थापन के नियम की सहायता से साधनों का इष्टतम संयोग ढूंढता है। प्रत्येक उत्पादक समय-समय पर भूमि,श्रम पूंजी, आदि साधनों सीमांत उपयोगिता आंकता रहता है और महंगे तथा निष्क्रिय साधनों की जगह सस्ते तथा सक्रिय साधनों को प्रतिस्थापित करता रहता है। इस प्रकार का प्रतिस्थापन करते-करते उत्पादक एक ऐसे बिंदु पर पहुंच जाता है जहां पर विभिन्न उत्पत्ति के साधनों की सीमांत उत्पत्ति समान हो जाती है। उत्पत्ति के साधनों का इसी बिंदु पर आदर्शतम संयोग स्थापित होगा। ऐसी दशा में उसका उत्पादन ब्यय न्यूनतम और लाभ अधिकतम होगा।
प्रोफेसर Benhm(बेनहम)ने इस तथ्य को निम्न प्रकार से एक सूत्र में व्यक्त किया
Marginal Return of Factor-A Marginal Return of Factor-B
––––––––––––––––––––––––––– =. –––––––-––--––––-----–-–--------–-
Price of Factor-A. Price of Factor-B
ऐसी दशा में उत्पादक B साधन की मात्रा कम करके A साधन की मात्रा को बढ़ाता है।वह इस क्रिया को तब तक चालू रखेगा जब तक कि:
Marginal Return of Factor-A. Marginal Return of Factor-B
_____________________________. =–––––––––––––––––––––––––––––––––
Price Factor-A Marginal Factor-B
(3)विनिमय में महत्व-सम-सीमांत उपयोगिता नियम की सहायता से हम विनिमय की सीमाओं का निर्धारण कर सकते हैं।जब कभी किसी वस्तु के मूल्य में बृद्धि होती है, तो उपभोक्ता महंगी वस्तु के स्थान पर सस्ती वस्तु की मांग करता है।यह प्रतिस्थापन तब तक चलता है, जब तक की उन दोनों की सीमांत उपयोगिता लगभग बराबर न हो जाय।
(4)वितरण के क्षेत्र में महत्व-उत्पादन के साधनों के सहयोग से ही उत्पादन संभव है।आज मुख्य समस्या उत्पादन को साधनों के बीच वितरित करने की है।उत्पत्ति के विभिन्न साधनों का पुरस्कार सीमांत उत्पादन के सिद्धांत के अनुसार निश्चित होता है और प्रत्येक साधन को उसकी सीमांत उत्पत्ति के अनुसार पुरस्कार दिया जाता है।
(5)राजस्व के क्षेत्र में महत्व- राजस्व का महत्वपूर्ण सिद्धांत( अधिकतम सामाजिक लाभ का सिद्धांत) सम सीमांत उपयोगिता नियम पर आधारित है। सार्वजनिक आय करों से प्राप्त की जाती है और इस आय को सार्वजनिक कार्यक्रमों पर खर्च किया जाता है। इस व्यवस्था में दो बातें होती हैं: प्रथम, करारोपण से करदाताओं का त्याग बढ़ता है। द्वितीय सार्वजनिक व्यय से लोगों को लाभ या उपयोगिता प्राप्त होती है। अतः सरकार के सामने यह समस्या आती है कि वह किस सीमा तक कर लगाए और किस सीमा तक ब्यय करे। अतः इसमें सरकार को तभी सफलता मिल सकती है जबकि निम्न बातों को अपनाया जाए:
(a) सार्वजनिक व्यय से प्राप्त सीमांत उपयोगिता कारारोपण के सीमांत त्याग के बराबर हो।
(b) विभिन्न मदों पर किए जाने वाले व्यय से मिलने वाली सीमांत उपयोगिता बराबर रहे।
(c) विभिन्न स्रोतों के बीच कर भार का बंटवारा इस क्रम से किया जाए कि प्रत्येक स्रोत का सीमांत त्याग समान या लगभग बराबर रहे।
अंत में हम सम सीमांत उपयोगिता नियम के महत्त्व को प्रोफ़ेसर चैपमैन के शब्दों में व्यक्त कर सकते हैं, " हम प्रतिस्थापन अथवा सम सीमांत उपयोगिता नियम के अनुसार अपनी आय का वितरण करने में ठीक उसी प्रकार विवश नहीं होते जिस प्रकार एक पत्थर ऊपर की ओर फेंके जाने पर विवश होकर नीचे जमीन पर गिरता है, परंतु हम वास्तव में ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि हममें तर्क एवं बुद्धि हैं।"
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सम सीमांत उपयोगिता नियम की आलोचना
सम सीमांत उपयोगिता नियम की प्रमुख आलोचनाएं निम्नलिखित हैं:
(1) उपभोक्ता को पूर्व विवेकशील मानने की धारणा अव्यवहारिक है-इस नियम की मान्यता है कि उपभोक्ता विवेकशील है। आलोचकों का मत है कि उपभोक्ता उतना विवेकशील नहीं है, जितना कि उसे समझा गया है। व्यवहार में वह हिसाब किताब के चक्कर से बचने के लिए बिना सोचे समझे भी ब्यय कर देता है। अनेक उपभोक्ता अज्ञानता के कारण वस्तुओं से प्राप्त होने वाली सीमांत उपयोगिता का पता लगाने में असमर्थ रहते हैं। अतः वह इस नियम के अनुसार ब्यय नहीं करता है।
(2) वस्तुओं का विभाजनिय होना (या अविभाज्य होना)- सम सीमांत उपयोगिता नियम के अंतर्गत मान लिया गया है कि जिन वस्तुओं का उपभोग किया जा रहा है उन्हें छोटी छोटी इकाइयों में बांटा जा सकता है, परंतु आलोचकों का कहना है कि अनेक वस्तुएं ऐसी हैं जिनका विभाजन नहीं किया जा सकता है। जैसे कार, रेडियो, मेज, कुर्सी आदि।
(3) रीति -रिवाज फैशन आदि में परिवर्तन- व्यक्ति हमेशा अपने वातावरण से प्रभावित होता आया है। इसी प्रभाव के कारण वह ऐसी वस्तुओं व सेवाओं का उपभोग कर बैठता है, जिनमें उसे उतनी उपयोगिता नहीं मिल पाती है, जितनी कि इस नियम से अपेक्षा की जाती है। जन्म एवं मृत्यु संबंधी अनेक संस्कार ऐसे हैं जिन पर व्यक्ति को मजबूर होकर ब्यय करना पड़ता है। इन संस्कारों पर होने वाले ब्यय की तुलना में मिलने वाली उपयोगिता कहीं कम होती है।
(4) वस्तुओं का प्राप्त ना होना- कभी-कभी उपभोक्ता जिस वस्तु का उपभोग करना चाहता है वह उसे नहीं मिल पाती है, तब वह घटिया वस्तु का उपभोग कर लेता है। अतः सम- सीमांत उपयोगिता नियम क्रियाशील नहीं होता है।
(5)उपयोगिता की माप करना कठिन- सम- सीमांत उपयोगिता नियम उपयोगिता की माप पर आधारित है। परंतु उपयोगिता की माप करना कठिन है। प्रोफेसर हिक्स ने उपयोगिता की माप का खंडन करते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि उपयोगिता एक मनोवैज्ञानिक धारणा है, जिसे संख्या में व्यक्त नहीं किया जा सकता है।
(6) मूल्य में परिवर्तन- सम सीमांत उपयोगिता नियम की आलोचना करते हुए यह कहा जाता है कि वस्तु की मूल्य में परिवर्तन आ जाने के कारण उपभोक्ता अपने मन में उपयोगिता की जो पूर्वगणना कर लेता है, वास्तव में वह उस उपयोगिता को प्राप्त नहीं कर पाता है। विशेषकर मुद्रा प्रसार के समय ऐसा होता है। इसलिए उपभोक्ता के लिए इस नियम का अनुसरण करना कठिन है।
(7) अनिश्चित बजट अवधि- प्रोफेसर बोल्ड़िंग ने बजट अवधि को ध्यान में रखते हुए इस नियम की आलोचना की है। उनका कहना है कि सम- सीमांत उपयोगिता नियम एक निश्चित सीमा के अंतर्गत लागू होता है, जबकि हमारी बजट अवधि निश्चित नहीं होती है। उदाहरण के लिए, इसमें टिकाऊ वस्तुओं को सम्मिलित किया जा सकता है। यह वस्तुएं वर्षों तक काम में लाई जा सकती हैं। जब हम इन वस्तुओं को क्रय करते हैं तब उस समय हम इन वस्तुओं की उपयोगिताओं की तुलना कुल बजट अवधि के लिए ही नहीं करते, बल्कि आने वाले वर्षों के लिए भी करते हैं। अतः ऐसी दशा में यह नियम लागू नहीं होता है।
(8) पूरक वस्तुओं के क्षेत्र में इस नियम का लागू न होना- जो वस्तुएं एक दूसरे की पूरक होती है या जिनका प्रयोग एक साथ एक निश्चित अनुपात में किया जाता है, उन वस्तुओं के क्षेत्र में यह नियम लागू नहीं होता है। उदाहरण के लिए, दूध और चीनी, स्याही और फाउंटेन पेन, डबल रोटी और मक्खन, आदि।
(9) मुद्रा की क्रय शक्ति में परिवर्तन- सम सीमांत उपयोगिता नियम इस मान्यता पर आधारित है कि मुद्रा की क्रय शक्ति में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं आना चाहिए। परंतु यह मान्यता वास्तविक नहीं है क्योंकि ज्यों-ज्यों उपभोक्ता मुद्रा की इकाइयों को खर्च करता जाता है त्यों-त्यों मुद्रा की अंतिम इकाई से मिलने वाली सीमांत उपयोगिता बढ़ती जाती है। यह स्थिति हर दशा में लागू होनी है, तब इस मान्यता को कैसे सही मान लिया जाए।
(10) अज्ञानता, आलस्य तथा लापरवाही- जब उपभोक्ता बाजार में वस्तुएं खरीदने जाता है तो अज्ञानता, आलस्य तथा लापरवाही कारण वह महंगी या घटिया वस्तुओं को क्रय कर लेता है। इस स्थिति में यह नियम लागू नहीं होगा।
सम सीमांत उपयोगिता नियम की चाहे जितनी आलोचना की जाए फिर भी इसका महत्व अर्थशास्त्र के क्षेत्र में बना हुआ है।
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