सम सीमांत उपयोगिता नियम का महत्व
सम सीमांत उपयोगिता नियम के महत्व का विचार मार्शल के इस कथन से स्पष्ट है कि "प्रतिस्थापन का सिद्धांत आर्थिक खोज के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में लागू होता है" नीचे नियम के महत्व को स्पष्ट किया गया है:
उपभोग के क्षेत्र में महत्व- सम सीमांत उपयोगिता नियम यह बताता है कि उपभोक्ता अपने सीमित साधनों से किस प्रकार अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करता है। नियम में हम यह स्पष्ट कर चुके हैं कि उपभोक्ता को तभी अधिकतम संतुष्टि प्राप्त हो सकती है, जब वह अपने द्रव्य की इकाई विभिन्न वस्तुओं में इस प्रकार खर्च करें की अंत में प्रत्येक वस्तु से मिलने वाली सीमांत उपयोगिता लगभग समान रहे। यदि मुद्रा के इस क्रम को बदला जाता है तो उपयोगिता में कमी आ जाएगी।
उत्पादन में महत्व- एक उत्पादक हमेशा सीमित साधनों से अधिक उत्पादन करके अधिकतम लाभ प्राप्त करना चाहता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए और प्रतिस्थापन के नियम की सहायता से साधनों का इष्टतम संयोग ढूंढता है। प्रत्येक उत्पादक समय-समय पर भूमि,श्रम पूंजी, आदि साधनों सीमांत उपयोगिता आंकता रहता है और महंगे तथा निष्क्रिय साधनों की जगह सस्ते तथा सक्रिय साधनों को प्रतिस्थापित करता रहता है। इस प्रकार का प्रतिस्थापन करते-करते उत्पादक एक ऐसे बिंदु पर पहुंच जाता है जहां पर विभिन्न उत्पत्ति के साधनों की सीमांत उत्पत्ति समान हो जाती है। उत्पत्ति के साधनों का इसी बिंदु पर आदर्शतम संयोग स्थापित होगा। ऐसी दशा में उसका उत्पादन ब्यय न्यूनतम और लाभ अधिकतम होगा।
प्रोफेसर Benhm(बेनहम)ने इस तथ्य को निम्न प्रकार से एक सूत्र में व्यक्त किया
Marginal Return of Factor-A Marginal Return of Factor-B
––––––––––––––––––––––––––– > –––––––-––--––––-----–-–--------–-
Price of Factor-A. Price of Factor-B
ऐसी दशा में उत्पादक B साधन की मात्रा कम करके A साधन की मात्रा को बढ़ाता है।वह इस क्रिया को तब तक चालू रखेगा जब तक कि:
Marginal Return of Factor-A. Marginal Return of Factor-B
_____________________________. =–––––––––––––––––––––––––––––––––
Price Factor-A Price of Factor-B
(3)विनिमय में महत्व-सम-सीमांत उपयोगिता नियम की सहायता से हम विनिमय की सीमाओं का निर्धारण कर सकते हैं।जब कभी किसी वस्तु के मूल्य में बृद्धि होती है, तो उपभोक्ता महंगी वस्तु के स्थान पर सस्ती वस्तु की मांग करता है।यह प्रतिस्थापन तब तक चलता है, जब तक की उन दोनों की सीमांत उपयोगिता लगभग बराबर न हो जाय।
(4)वितरण के क्षेत्र में महत्व-उत्पादन के साधनों के सहयोग से ही उत्पादन संभव है।आज मुख्य समस्या उत्पादन को साधनों के बीच वितरित करने की है।उत्पत्ति के विभिन्न साधनों का पुरस्कार सीमांत उत्पादन के सिद्धांत के अनुसार निश्चित होता है और प्रत्येक साधन को उसकी सीमांत उत्पत्ति के अनुसार पुरस्कार दिया जाता है।
(5)राजस्व के क्षेत्र में महत्व- राजस्व का महत्वपूर्ण सिद्धांत( अधिकतम सामाजिक लाभ का सिद्धांत) सम सीमांत उपयोगिता नियम पर आधारित है। सार्वजनिक आय करों से प्राप्त की जाती है और इस आय को सार्वजनिक कार्यक्रमों पर खर्च किया जाता है। इस व्यवस्था में दो बातें होती हैं: प्रथम, करारोपण से करदाताओं का त्याग बढ़ता है। द्वितीय सार्वजनिक व्यय से लोगों को लाभ या उपयोगिता प्राप्त होती है। अतः सरकार के सामने यह समस्या आती है कि वह किस सीमा तक कर लगाए और किस सीमा तक ब्यय करे। अतः इसमें सरकार को तभी सफलता मिल सकती है जबकि निम्न बातों को अपनाया जाए:
(a) सार्वजनिक व्यय से प्राप्त सीमांत उपयोगिता कारारोपण के सीमांत त्याग के बराबर हो।
(b) विभिन्न मदों पर किए जाने वाले व्यय से मिलने वाली सीमांत उपयोगिता बराबर रहे।
(c) विभिन्न स्रोतों के बीच कर भार का बंटवारा इस क्रम से किया जाए कि प्रत्येक स्रोत का सीमांत त्याग समान या लगभग बराबर रहे।
अंत में हम सम सीमांत उपयोगिता नियम के महत्त्व को प्रोफ़ेसर चैपमैन के शब्दों में व्यक्त कर सकते हैं, " हम प्रतिस्थापन अथवा सम सीमांत उपयोगिता नियम के अनुसार अपनी आय का वितरण करने में ठीक उसी प्रकार विवश नहीं होते जिस प्रकार एक पत्थर ऊपर की ओर फेंके जाने पर विवश होकर नीचे जमीन पर गिरता है, परंतु हम वास्तव में ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि हममें तर्क एवं बुद्धि हैं।"
nice
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