प्रकट अधिमान पर आधारित सेम्यूलसन का मांग प्रमेय

 प्रकट अधिमान पर आधारित  सेम्यूलसन का मांग प्रमेय

सेम्यूलसन के शब्दों में," कोई वस्तु जिसकी मांग केवल मौद्रिक आय  के बढ़ने पर बढ़ती है, निश्चित रूप से मांग में घटेगी यदि केवल उसकी कीमत में वृद्धि होती है।"  

       इस प्रमेय के प्रथम भाग में'आय'एवं मांग का सीधा एवं धनात्मक संबंध दिखाया है जो धनात्मक आय लोच का सूचक है।प्रमेय का दूसरा भाग प्रथम कथन को दूसरे शब्दों में व्यक्त करता है जिसमें कीमत और मांग के विपरीत तथा ऋण आत्मक कीमत लोच को सूचित करता है। वस्तुतः प्रमेेेय के आधार पर दोनों एक ही है अर्थात धनात्मक आय लोच, ऋणआत्मक कीमत लोच को प्रदर्शित करती है। इसे सेम्यूलसन ने उपभोग सिद्धांत का आधारभूत नियम कहा है।

चित्र दो में उपभोग का आधारभूत प्रमेय दिखाया गया है।

उपभोक्ता की प्रारंभिक कीमत रेखा RS है जिसमें वह अपनी समस्त आय से वस्तु X की अधिकतम OS इकाइयां  तथा  y 

वस्तु की OR इकाइयां  खरीद सकता है। इस आरंभिक स्थिति में उपभोक्ता दी गई आय एवं वस्तुओं की कीमतों पर संयोग A के लिए अधिमान प्रकट करता है जिसका अभिप्राय है कि उपभोक्ता ने प्रथम स्थिति में कीमत रेखा RS के अन्य बिंदु तथा प्रयोग क्षेत्र ROS  के अन्य  सभी बिंदु संयोगों को संयोग A के लिए अधिमान प्रकट कर रहा है। दूसरी स्थिति में मान लीजिए कि वस्तु X  कीमत में वृद्धि हो जाती है जबकि वस्तु Y की कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता। वस्तु X कीमत में वृद्धि के कारण कीमत रेखा RS से RS1 हो जाती है।कीमत वृद्धि का उपभोक्ता की मांग पर प्रभाव ज्ञात करने के लिए बदली स्थिति का हम विश्लेषण करते हैं नई कीमत रेखा RS1 होने पर पूर्व चुने गए संयोग A को अब उपभोक्ता प्राप्त नहीं कर सकता।उपभोक्ता पुनः संयोग A को खरीद सके इसके लिए उपभोक्ता को कुछ अतिरिक्त मौद्रिक आय देकर उसकी क्षतिपूर्ति की जाती है। उसके लिए नई कीमत रेखा RS1 के समानांतर एक ऐसी कीमत रेखा खींची जाती है जो संयोग बिंदु A से गुजरे।चित्र 2 में यह रेखा KT से प्रदर्शित की गई है। नई काल्पनिक कीमत रेखा अतिरिक्त मौद्रिक आय को वस्तु Y  के शब्दों में बताती है। चित्र में अतिरिक्त मौद्रिक आय वस्तु Y के शब्दों में KR है जिसे  सैमुअल्सन अति छतिपूर्ति का नाम देते हैं। क्षतिपूर्ति के बाद कीमत रेखा KT  होने पर नया उपभोग क्षेत्र KOT होगा। उपभोक्ता का व्यवहार संगत होने के कारण नई कीमत रेखा KT के AT भाग पर उपभोक्ता अपना अधिमान प्रकट नहीं करेगा क्योंकि रेखा AT से सभी बिंदु उसे आरंभिक कीमत रेखा RS  पर भी उपलब्ध थे, किंतु उपभोक्ता ने AT  के सभी बिंदुओं की तुलना में संयोग A  पर अधिमान प्रकट करके उन बिंदुओं को निम्न घोषित किया था। उपभोक्ता व्यवहार की सामंजस्यता के कारण उपभोक्ता कीमत रेखा के AT  भाग पर उपभोग नहीं करेगा। इस प्रकार कीमत रेखा KT होने पर या तो उपभोक्ता संयोग बिंदु A पर उपभोग करेगा या संयोग क्षेत्र KRA के किसी बिंदु पर।यदि उपभोक्ता KA के किसी बिंदु पर उपभोग करता है  तो इसका अर्थ है कि उपभोक्ता पहले की तुलना में वस्तु X कि कम इकाइयां खरीदेगा और वस्तु Y की अधिक। यह निर्णय उपभोक्ता उस स्थिति में कर रहा है जब उसे क्षतिपूर्ति द्वारा अतिरिक्त मौद्रिक आय प्रदान कर दी गई है। अतिरिक्त मौद्रिक आय प्राप्त होने पर भी वस्तु X  की कीमत वृद्धि उसके मांग को कम कर रही है। अब यदि अतिरिक्त मौद्रिक आय जो उपभोक्ता को प्रदान की गई थी, को वापस ले लिया जाए तो प्रयोग क्षेत्र KRA के केवल RA  भाग पर उपभोग करने में सफल होगा।RA भाग का प्रत्येक बिंदु प्रारंभिक वस्तु की तुलना में वस्तु X की कम मांग को बताता है। यह तभी संभव होता है जब हम मांग की धनात्मक आय लोच स्वीकार करते हैं  अर्थात मौद्रिक आय की प्रत्येक कमी वस्तु X की मांग में कमी करती है। जहां तक कीमत वृद्धि का मांग से संबंध है इससे कीमत मांग का विपरीत संबंध  सिद्ध हो जाता है।

      ब इसी प्रकार वस्तु एक्स की कीमत कमी से संबंधित उपभोग सिद्धांत का आधारभूत नियम भी सिद्ध किया जा सकता है जिसके अनुसार" कोई वस्तु जिसकी मांग केवल मौद्रिक आय के घटने पर घटती है निश्चित रूप से मांग में बढ़ेगी यदि उसकी केवल कीमत में कमी होती है।"

        चित्र 3 में वस्तु X की कीमत में कमी होने पर कीमत रेखा RS के स्थान पर RS1 हो जाती है।


 कीमत में कमी से पूर्व उपभोक्ता बिंदु A  पर अपना अधिमान प्रकट कर चुका है अर्थात उपभोग क्षेत्र ROS  के अन्य सभी बिंदुओं को उपभोक्ता संयोग A  की तुलना में निम्न  घोषित कर चुका है। कीमत में कमी के बाद नई कीमत रेखा RS1  पर वास्तविक आय अधिक हो जाती है। कीमत का मांग पर प्रभाव जानने के लिए क्षतिपूर्ति प्रक्रिया के अंतर्गत उपभोक्ता से इतनी आय वापस ले ली जाती है कि उपभोक्ता अपने पूर्व संयोग A को खरीद सके। इस प्रकार नवीन काल्पनिक कीमत KT रेखा प्राप्त होती है।KT की स्थिती में A संयोग  उपर की ओर KA पर किसी संयोग बिंदु का चुनाव नहींं करेगा क्योंकी KA रेखा के सभी संयोग पर RS कीमत रेखा की स्थिति में ही छोड़  चुका है। अतः उपभोक्ता या तो संयोग बिंदुओं A का चयन करेगा अथवा AT के किसी बिंदु पर। यदि उपभोक्ता AT पर के किसी संयोग का चयन करता है तब इसका अभिप्राय है कि वह वस्तु X का अधिक मात्रा में क्रय करता है तथा वस्तु Y का कम मात्रा में। यह वस्तु X के उपभोग की वृद्धि  आय के कम कर देने की दशा में भी उपस्थित हो रही है। अब यदि क्षतिपूर्ति प्रक्रिया में उपभोक्ता से छीनी गई आय यदि वापस दे दी जाए तो वह निश्चित रूप से RS1 कीमत रेखा का सामना करेगा। साथ ही वस्तु X की कीमत कम होने पर वस्तु X का अधिक मात्रा में उपभोग करेगा। इस प्रकार मांग के नियम की सत्यता सिद्ध होती है।

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