सम सीमांत उपयोगिता नियम की आलोचना
सम सीमांत उपयोगिता नियम की प्रमुख आलोचनाएं निम्नलिखित हैं:
(1) उपभोक्ता को पूर्व विवेकशील मानने की धारणा अव्यवहारिक है-इस नियम की मान्यता है कि उपभोक्ता विवेकशील है। आलोचकों का मत है कि उपभोक्ता उतना विवेकशील नहीं है, जितना कि उसे समझा गया है। व्यवहार में वह हिसाब किताब के चक्कर से बचने के लिए बिना सोचे समझे भी ब्यय कर देता है। अनेक उपभोक्ता अज्ञानता के कारण वस्तुओं से प्राप्त होने वाली सीमांत उपयोगिता का पता लगाने में असमर्थ रहते हैं। अतः वह इस नियम के अनुसार ब्यय नहीं करता है।
(2) वस्तुओं का विभाजनिय होना (या अविभाज्य होना)- सम सीमांत उपयोगिता नियम के अंतर्गत मान लिया गया है कि जिन वस्तुओं का उपभोग किया जा रहा है उन्हें छोटी छोटी इकाइयों में बांटा जा सकता है, परंतु आलोचकों का कहना है कि अनेक वस्तुएं ऐसी हैं जिनका विभाजन नहीं किया जा सकता है। जैसे कार, रेडियो, मेज, कुर्सी आदि।
(3) रीति -रिवाज फैशन आदि में परिवर्तन- व्यक्ति हमेशा अपने वातावरण से प्रभावित होता आया है। इसी प्रभाव के कारण वह ऐसी वस्तुओं व सेवाओं का उपभोग कर बैठता है, जिनमें उसे उतनी उपयोगिता नहीं मिल पाती है, जितनी कि इस नियम से अपेक्षा की जाती है। जन्म एवं मृत्यु संबंधी अनेक संस्कार ऐसे हैं जिन पर व्यक्ति को मजबूर होकर ब्यय करना पड़ता है। इन संस्कारों पर होने वाले ब्यय की तुलना में मिलने वाली उपयोगिता कहीं कम होती है।
(4) वस्तुओं का प्राप्त ना होना- कभी-कभी उपभोक्ता जिस वस्तु का उपभोग करना चाहता है वह उसे नहीं मिल पाती है, तब वह घटिया वस्तु का उपभोग कर लेता है। अतः सम- सीमांत उपयोगिता नियम क्रियाशील नहीं होता है।
(5)उपयोगिता की माप करना कठिन- सम- सीमांत उपयोगिता नियम उपयोगिता की माप पर आधारित है। परंतु उपयोगिता की माप करना कठिन है। प्रोफेसर हिक्स ने उपयोगिता की माप का खंडन करते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि उपयोगिता एक मनोवैज्ञानिक धारणा है, जिसे संख्या में व्यक्त नहीं किया जा सकता है।
(6) मूल्य में परिवर्तन- सम सीमांत उपयोगिता नियम की आलोचना करते हुए यह कहा जाता है कि वस्तु की मूल्य में परिवर्तन आ जाने के कारण उपभोक्ता अपने मन में उपयोगिता की जो पूर्वगणना कर लेता है, वास्तव में वह उस उपयोगिता को प्राप्त नहीं कर पाता है। विशेषकर मुद्रा प्रसार के समय ऐसा होता है। इसलिए उपभोक्ता के लिए इस नियम का अनुसरण करना कठिन है।
(7) अनिश्चित बजट अवधि- प्रोफेसर बोल्ड़िंग ने बजट अवधि को ध्यान में रखते हुए इस नियम की आलोचना की है। उनका कहना है कि सम- सीमांत उपयोगिता नियम एक निश्चित सीमा के अंतर्गत लागू होता है, जबकि हमारी बजट अवधि निश्चित नहीं होती है। उदाहरण के लिए, इसमें टिकाऊ वस्तुओं को सम्मिलित किया जा सकता है। यह वस्तुएं वर्षों तक काम में लाई जा सकती हैं। जब हम इन वस्तुओं को क्रय करते हैं तब उस समय हम इन वस्तुओं की उपयोगिताओं की तुलना कुल बजट अवधि के लिए ही नहीं करते, बल्कि आने वाले वर्षों के लिए भी करते हैं। अतः ऐसी दशा में यह नियम लागू नहीं होता है।
(8) पूरक वस्तुओं के क्षेत्र में इस नियम का लागू न होना- जो वस्तुएं एक दूसरे की पूरक होती है या जिनका प्रयोग एक साथ एक निश्चित अनुपात में किया जाता है, उन वस्तुओं के क्षेत्र में यह नियम लागू नहीं होता है। उदाहरण के लिए, दूध और चीनी, स्याही और फाउंटेन पेन, डबल रोटी और मक्खन, आदि।
(9) मुद्रा की क्रय शक्ति में परिवर्तन- सम सीमांत उपयोगिता नियम इस मान्यता पर आधारित है कि मुद्रा की क्रय शक्ति में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं आना चाहिए। परंतु यह मान्यता वास्तविक नहीं है क्योंकि ज्यों-ज्यों उपभोक्ता मुद्रा की इकाइयों को खर्च करता जाता है त्यों-त्यों मुद्रा की अंतिम इकाई से मिलने वाली सीमांत उपयोगिता बढ़ती जाती है। यह स्थिति हर दशा में लागू होनी है, तब इस मान्यता को कैसे सही मान लिया जाए।
(10) अज्ञानता, आलस्य तथा लापरवाही- जब उपभोक्ता बाजार में वस्तुएं खरीदने जाता है तो अज्ञानता, आलस्य तथा लापरवाही कारण वह महंगी या घटिया वस्तुओं को क्रय कर लेता है। इस स्थिति में यह नियम लागू नहीं होगा।
सम सीमांत उपयोगिता नियम की चाहे जितनी आलोचना की जाए फिर भी इसका महत्व अर्थशास्त्र के क्षेत्र में बना हुआ है।
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