उत्पादन संभावना वक्र ( PPC ) / उत्पादन संभावना सीमा [ Production Possibility Curve ( PPC ) / Production Possibility Frontier]

  


उत्पादन संभावना वक्र ( PPC ) / उत्पादन संभावना सीमा  [Production Possibility Curve ( PPC ) / Production Possibility Frontier] 

उत्पादन संभावना वक्र वह वक्र है जो दिए हुए संसाधनों तथा उत्पादन की तकनीक के आधार पर दो वस्तुओं के उत्पादनों की वैकल्पिक संभावनाओं को प्रकट करता है । ( The production possibility curve is the curve showing alternative production possibilities of two goods with the given resources and technique of production . ) इसे उत्पादन संभावना सीमा ( Production Possibility Frontier or Boundary ) भी कहा जाता है । अर्थशास्त्री इस रेखा को रूपांतरण रेखा ( Transformation Line ) या रूपांतरण वक्र ( Transformation Curve ) भी कहते हैं । उत्पादन संभावना वक्र दो वस्तुओं के विभिन्न संयोगों को प्रकट करता है जिनका उत्पादन दिए हुए संसाधनों द्वारा किया जाता है । यह इन मान्यताओं पर आधारित हैं : ( i ) संसाधनों का पूर्ण एवं कुशल प्रयोग किया जाता है तथा ( ii ) उत्पादन की तकनीक स्थिर रहती है । ( Production possibility curve shows different combinations of two goods which can be produced with the given resources on the assumptions that ( i ) resources are fully and efficiently utilised , and ( ii ) technique of production remains constant . ) 

उदाहरण ( Illustration )

एक उत्पादक उपलब्ध संसाधनों ( तथा उपलब्ध तकनीक ) के साथ चावल अथवा गेहूँ को उत्पादित करने का चयन या निर्णय लेता है । यदि उत्पादन के सभी संसाधन केवल गेहूँ के उत्पादन के लिए प्रयोग किए जाएँ तो 100 लाख टन गेहूँ का उत्पादन किया जा सकता है । इसके विपरीत यदि सभी संसाधन केवल चावल के उत्पादन के लिए प्रयोग किए जाएँ तो 40 लाख टन चावल का उत्पादन किया जा सकता है । यदि वह गेहूँ और चावल दोनों के उत्पादन का निर्णय लेता है तब दोनों वस्तुओं के विभिन्न संयोगों का उत्पादन किया जा सकता है जिसे तालिका 1 द्वारा प्रकट किया गया है ।

 गेहूँ तथा चावल के उत्पादन की विभिन्न संभावनाओं को प्रकट करने वाली तालिका को उत्पादन संभावना अनुसूची ( Production Possibility Schedule ) कहते हैं ।


तालिका 1 में संयोग A प्रकट करता है कि चावल का उत्पादन किए 100 लाख टन गेंहू का उत्पादन किया जा सकता है। इसी भांति संयोग E प्रकट करता है कि गेंहू का उत्पादन किये बिना 40 लाख टन चावल का उत्पादन किया जा सकता है । इन दोनों चरम सीमाओं के अतिरिक्त गेहूँ और चावल के उत्पादन की कई वैकल्पिक संभावनाएँ हैं जैसे संयोग B यह प्रकट करता है कि उपलब्ध संसाधनों और तकनीक के साथ 90 लाख टन गेहूँ और 10 लाख टन चावल का उत्पादन किया जा सकता है । इसी भांति संयोग C यह प्रकट करता है कि उपलब्ध संसाधनों और तकनीक के आधार पर 70 लाख टन गेहूँ और 20 लाख टन चावल का उत्पादन किया जा सकता है । संयोग D यह प्रकट करता है कि दिए हुए संसाधनों और तकनीक के आधार पर 40 लाख टन गेहूँ और 30 लाख टन चावल का उत्पादन किया जा सकता है । उत्पादन की उपरोक्त संभावनाओं को एक ग्राफ द्वारा प्रकट करके उत्पादन संभावना वक्र को ज्ञात किया जा सकता है जो चित्र 2 द्वारा प्रकट किया गया है ।


चित्र 2 में X- अक्ष पर चावल की मात्रा और Y- अक्ष पर गेहूँ की मात्रा को दर्शाया गया है । दिए हुए संसाधनों और तकनीक के साथ बिंदु A , B , C , D और E उत्पादन की विभिन्न संभावनाओं को प्रकट करते हैं । इन सभी बिंदुओं को जोड़ने से हमें AE वक्र प्राप्त होता है जिसे उत्पादन संभावना वक्र ( Production Possibility Curve ) या रूपांतरण वक्र ( Transformation Curve ) कहा जाता है ।

उत्पादन के प्राप्य और अप्राप्य संयोग ( Attainable and Unattainable Combinations of Output )

उपलब्ध संसाधनों और तकनीक के साथ PPC के ऊपर तथा PPC के भीतर सभी बिंदु प्राप्य संयोग हैं । अतएव सीमा रेखा के ऊपर या सीमा रेखा के भीतर ( चित्र 2 में ) उत्पादन का कोई भी बिंदु ( छाया वाले भाग के अंदर ) वह बिंदु है जो दो वस्तुओं के उत्पादन के ‘ प्राप्य संयोग ' ( Attainable Combination ) को प्रकट करता है । उत्पादन की सीमा रेखा से बाहर कोई भी बिंदु ( जैसे चित्र 2 में बिंदु F ) दो वस्तुओं के उत्पादन के ' अप्राप्य संयोग ' ( Unattainable Combination ) को प्रकट करता है । 

उत्पादन संभावना वक्र ( PPC ) की मान्यताएँ  (Assumptions of PPC ) 

PPC की दो आधारभूत मान्यताएँ इस प्रकार हैं : 
( i ) उपलब्ध संसाधनों का पूर्ण एवं कुशल प्रयोग किया गया है तथा
 ( ii ) तकनीक में कोई परिवर्तन नहीं होता है । 
घ्यानपूर्वक अवलोकन कीजिए , इन मान्यताओं में चार बातें निहित हैं : ( i ) PPC को उपलब्ध संसाधनों के समूह के आधार पर बनाया गया है , ( ii ) उपलब्ध संसाधनों का पूर्ण प्रयोग किया गया है , ( iii ) उपलब्ध संसाधनों का कुशल प्रयोग किया गया है तथा ( iv ) तकनीक की स्थिति में परिवर्तन नहीं होता है । 


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