प्रतिस्थापन प्रभाव ( SUBSTITUTION EFFECT )
प्रतिस्थापन प्रभाव ( SUBSTITUTION EFFECT )
जब उपभोक्ता की आय में कोई परिवर्तन न हो तथा दो वस्तुओं के सापेक्ष कीमतों में परिवर्तन हो जाए तो इसके फलस्वरूप किसी वस्तु की मांग में जो परिवर्तन होता है उसे प्रतिस्थापन प्रभाव कहा जाता है । प्रतिस्थापन प्रभाव उस समय कार्यशील होता है , जबकि उपभोक्ता की आय में परिवर्तन न होते हुए दोनों ही वस्तुओं की सापेक्ष कीमतों में इस प्रकार परिवर्तन होते हैं कि उपभोक्ता पहले की अपेक्षा न अच्छी स्थिति में होता है न खराब स्थिति में अर्थात् उसकी सन्तुष्टि का स्तर पूर्ववत बना रहता है । उपभोक्ता को बदलती हुई कीमतों पर अपनी खरीद को इस प्रकार व्यवस्थित करना पड़ता है कि अपेक्षाकृत महंगी वस्तु कम खरीदी जाती है तथा अपेक्षाकृत सस्ती वस्तु अधिक मात्रा में क्रय की जाती है । कुल मिलाकर उपभोक्ता को न तो हानि होती है और न ही लाभ होता है , बल्कि सन्तुष्टि का स्तर यथावत बना रहता है । इस तरह जब उपभोक्ता एक ही तटस्थता वक्र पर एक सन्तुलन बिन्दु से दूसरे सन्तुलन बिन्दु पर जाता है तो इसे प्रतिस्थापन प्रभाव कहते हैं ।
वित्र 27 में उपभोक्ता की प्रारम्भिक कीमत रेखा PL है जिस पर उपभोक्ता का सन्तुलन E , है जो दोनों वस्तुओं के Oxo + OYo संयोग को प्रकट करता है । यदि X- वस्तु सस्ती हो जाती है , तो अब उसी मौद्रिक आय में उपभोक्ता X- वस्तु की पहले की अपेक्षा अधिक इकाइयां खरीद सकता है जिससे कीमत रेखा PoL2 , हो जाएगी । यह कीमत रेखा पहले की अपेक्षा ऊंची है जिस पर सन्तुलन का नया बिन्दु किसी ऊंचे तटस्थता वक़ में होगा और यह ऊंचे सन्तोष तथा आय में वृद्धि का प्रतीक होगा । अतः उपभोक्ता के समान वास्तविक आय व सन्तोष को बनाए रखने के लिए उसी तटस्थता वक्र ( Ic ) पर रहना पड़ेगा । इसलिए वास्तविक आय को समान रखने के लिए उपभोक्ता को कुछ मौद्रिक आय बचा कर रखनी पड़ेगी । इस प्रकार नए कीमत अनुपात को बनाए रखने वाली कीमत रेखा P1L1 होगी । यह तटस्थता वक्र Ic के E1 विन्दु पर स्पर्श रेखा है जिसके अनुसार उपभोक्ता का नया वस्तु संयोग- X वस्तु की Ox1 की OY1 मात्रा का है अर्थात् Ox1 + OY1 इस प्रकार X- वस्तु की कीमत के घट जाने से उपभोक्ता ने महंगी Y- वस्तु की YoY1 इकाइयों के स्थान पर सस्ती X- वस्तु की XoY1 ) इकाइयों का प्रतिस्थापन किया है
यहाँ यह स्पष्ट करना अनिवार्य है कि प्रतिस्थापन प्रभाव हमेशा धनात्मक ( positive ) होता है । इस सम्बन्ध में अभी यह अस्पष्टता बनी हुई है कि इसे धनात्मक क्यों कहा जाता है ? वास्तव में X- वस्तु की कीमत घटने से इस वस्तु की मांग बढ़ी है और चूंकि दो चरों के बीच के सम्बन्ध को variables के विपरीत दिशाओं के बदलने से इनको ऋणात्मक माना जाता है । इसलिए वाटसन जैसे अर्थशास्त्रियों ने प्रतिस्थापन प्रभाव को ऋणात्मक लिखा है , लेकिन ऋणात्मक लिखने से कीमत प्रभाव के आय - प्रभाव व प्रतिस्थापन प्रभाव का योग होने की स्थिति को समझाने में कठिनाई होती है इसलिए धनात्मक ही लिखना अधिक उचित है ।
संक्षेप में प्रतिस्थापन प्रभाव के अन्तर्गत निम्नलिखित बातों का समावेश होता है :
1. उपभोक्ता की आय पूर्ववत बनी रहती है ।
2. दो वस्तुओं की सापेक्ष कीमतों में परिवर्तन हो जाता है ।
3. एक वस्तु महंगी तथा दूसरी वस्तु सस्ती हो जाती है ।
4. एक वस्तु के महंगे होने का प्रभाव दूसरी वस्तु के सस्ते होने वाले प्रभाव से पूर्णतया समाप्त हो जाता है ।
5. उपभोक्ता का कुल सत्तोष पूर्ववत् बना रहता है , अर्थात् वह अपने पुराने तटस्थता वक्र पर ही बना रहता है ।
Thankio sir....
ReplyDelete