कविता-"पुलवामा हमला"(एक शहीद के बेटे की अपनी माँ से मार्मिक विनती)
माँ मुझको बंदूक मंगा दो,मैं भी लड़ने जाऊंगा, बाबा के हत्यारों को चुन-चुन मार गिराऊंगा। छोड़ रहा हूँ छोटा भाई,वह सारे रस्म निभाएगा, कर दिया बलिदान पति को तूने, अब तेरा बेटा कर्ज चुकाएगा। बहुत हो चुके छलनी सीने, अब दुश्मन को धूल चटाएंगे, उसके घर में घुस करके हम,घर में ही कब्र बनाएंगे। माँ मुझको बंदूक दिला दो हम भी लड़ने जाएंगे। करबद्ध निवेदन करता हूँ मैं, राजनीति के कर्णधारो से, दे दो हमको खुली छूट, लड़ने को इन गद्दारो से। खा रहा कसम हूँ मातृभूमि की,रण में ना पीठ दिखाउंगा, लहराएगा तीरंगा दुश्मन की धरती पर, या खुद तिरंगें में लिपट के आउंगा। माँ मुझको बंदूक दिला दो, मैं भी लड़ने जाउंगा। बहुत चल चुका गांधी के पथ पर,अब नेताजी के पथ पर चलने दो, दुश्मन की छाती पर चढ़कर,सीने में गोली भरने दो। एहसास करा दो दुश्मन को तिल भर भी नहीं सह सकते हैं, औकात पे अपनी आ जाये तो तुमको, नक़्शे से गायब कर सकते हैं। हम बंशज राणा, वीर शिवा के,दुश्मन से खौफ ना खायेंगे माँ मुझको बन्दूक दिल दो,हम भी लड़ने जाएंगे। मत शील करो,संकोच करो,अपनो का कुछ तो होश करो, खो चुकी मनोबल जनता के सीने में अब तो जोश भरो। ...